Tuesday 21 April 2020

Controversy हिन्दुओं में सभी शुभकार्य दिन में होते हैं तो विवाह रात्रि में क्यों

सनातन धर्म में सभी शुभ कार्य दिन में होते हैं सभी पूजा-पाठ भी दिन में होते हैं जैसे की दुर्गा जी का पूजा हो, सरस्वती जी का पूजा हो, गणेश जी का पूजा हो या सूर्य देव की पूजा। सभी शुभ कार्य दिन में होते हैं। सिर्फ डकैत व श्मशान काली की पूजा रात्रि में होता है। तो यहां यह बताना जरूरी होगा कि डकैत काली की पूजा के लिए शुभ घड़ी नहीं देखी जाती है यह किसी भी शनिवार की रात्रि में होता है। डकैत काली की पूजा का उद्देश्य डकैतों से सुरक्षा से सम्बंधित रहा है। श्मशान काली की पूजा अमावस्या की रात्रि में होता है। गौरतलब है कि अमावस्या कोई शुभ दिन या शुभ घड़ी नहीं होता। इस पूजा का उद्देश्य तंत्र सिद्धि और तंत्र सिद्धि से संबंधित हवन व यज्ञ है।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में रात्रि विवाह का पूर्ण खण्डन किया है।  पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी हिन्दू गायत्री परिवार में  विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं!

कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी शुभ काम रात्रि में नहीं किया जाता है तो हिंदुओं का विवाह रात्रि में क्यों होता है क्या आप में से किसी ने इस बात पर गौर किया है। आज हम इसी बात पर चर्चा करेंगे कि हिंदुओं का विवाह रात्रि में क्यों किया जाता है  इसके पीछे क्या कहानी छिपी हुई है।

प्रारंभ में सभी हिंदुओं का विवाह दिन में ही हुआ करता था। चाहे वह सीता जी का स्वयंवर हो या द्रौपदी का स्वयंवर या किसी और का स्वयंवर दिन में ही हुआ करते थे। क्योंकि पहले रात्रि में विवाह का प्रावधान ही नहीं था। रात्रि में विवाह प्रथा पिछले 400 साल से शुरू हुई है इसके पीछे की कहानी इस प्रकार है। 

जब मुग़ल व अन्य मुस्लिम आक्रमणकारी भारत आए तो उन लोगों ने भारतीयों पर बहुत अत्याचार किया हिंदुओं के विवाह के समय पहुंचकर वहां लूटपाट मचाने लगे और विवाह में उपस्थित सभी कुंवारी कन्याओं को बलपूर्वक उठा लेते और उन्हें या तो मुस्लिम बना देते या उनके साथ दुष्कर्म करते इस तरह से जब भी दिन में विवाह होता तो मुस्लिम आक्रमणकारी वहां तबाही मचा देते। अतः हिंदु अपने कई प्राचीन परंपराएं छोड़ने को विवश हो गए। इस प्रकार रात्रि में विवाह करने की प्रथा हिंदुओं में शुरू हुई। 

भारतीय इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनकी विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में दो ब्राह्मण युवकों से कराया था। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने पर विवश हो गए।

जब महाराजा रंजीत सिंह का राज फिल्लौर से लेकर काबुल तक फ़ैलगया तब उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा के अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी। तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक, केरल, असम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं। अर्थात इन प्रदेशों में दिन में विवाह होते हैं।

संदर्भ : यह इतिहास कथा विभिन्न पुस्तकों, जनश्रुति एवं इंटरनेट से प्राप्त की गई सूचनाओं पर आधारित है l


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