Monday 31 August 2020

अल्लाह शब्द संस्कृत से बना है जिसका अर्थ है - देवी

विद्वानों के मतानुसार इस्लाम के अल्लाह शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द अल्लाह से हुई है। संस्कृत में अल्लाह शब्द का अर्थ होता है देवी। इस संबंध में एक उपनिषद भी उपलब्ध है अल्लोपनिषद जिसमें चंडी, भवानी, दुर्गा,तारा, अंबा, पार्वती, गौरी आदि देवी को अल्लाह शब्द से संबोधित किया गया है। जिस प्रकार सनातन धर्म में "या" शब्द का प्रयोग देवियों को पुकारने में किया जाता  हैं। (जैसे कि - " या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।" या फिर " या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वृस्तावता। या वीणा वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना।।" ) ठीक उसी प्रकार से अल्लाह शब्द का प्रयोग करते समय " या " शब्द को पहले रखा जाता है। यानि कि " या अल्लाह "। इस प्रकार अल्लाह शब्द जैसा संस्कृत में उपयोग होता है ठीक उसी प्रकार इस्लाम में भी इसका उपयोग किया जाता है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। यह आज भी सनातन धर्म में "या अल्लाह" या फिर "या देवी" कह के पुकारा जाता है और इस्लाम में भी "या अल्लाह" ही कहा जाता है। 



गौरतलब है कि संपूर्ण विश्व में सर्वप्रथम एकमात्र भाषा वैदिक भाषा थी अर्थात संस्कृत भाषा जिसे वैदिक भाषा या देववाणी भी कहा जाता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब को सन 613 ईस्वी के आसपास इस्लाम का ज्ञान प्राप्त हुआ था और इसी समय को (यानि सन ६१३ ईस्वी ) इस्लाम का आरंभ माना जाता है। हालांकि इस समय तक इस्लाम एक नए धर्म के रूप में नहीं देखा जाता था। उस समय मूर्ति पूजन की परंपरा थी और मूर्ति पूजन संस्कृत भाषा में ही होता था। भले ही बोलचाल की भाषा अरबी थी परंतु वैदिक पूजा पद्धति प्रचलित थी। और उनकी पूजा में या अल्लाह शब्द का ही उपयोग होता था। यही कारण है कि इस्लाम में भी " या अल्लाह " शब्द को बरकरार रखा गया अपने इष्ट देव की आराधना के लिए। 



इस लेख में दी गई जानकारी राशिफल गुरु के स्वयं का विचार नहीं है। बल्कि यह जानकारी न्यूज़ पेपर और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर दी गई है। परन्तु यदि किसी पाठक को ऐसा प्रतीत होता है कि इस लेख में दी गई जानकारी (लिखने में या समझने में) में कुछ कमी है या गलती है तो ऐसे पाठकों से नम्र निवेदन है कि आप अपना विचार कमेंट के माध्यम से हमें दें हम अवश्य उनके कॉमेंट के आधार पर अपने इस लेख में (आवश्यकता अनुसार) परिवर्तन करेंगे। राशिफल गुरु इस बिषय के सच या झूठ होने का दवा (प्रत्यक्ष, परोक्ष या अन्यथा) नहीं करता है। 
Reference 
:http://brahmanjagritimunch.blogspot.com/2011/07/blog-post_08.html
https://www.facebook.com/VHPBDChandigarh/posts/1520649284906232/
http://hamaaraa-bhaarat.blogspot.com/2014/11/some-truth.html#:~:text=29-,%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%20%E2%80%9C%E0%A4%85%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%3A%20%E2%80%9D%20%3D%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%20%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80%20.,%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%20%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A4%BE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%20%7C

Thursday 27 August 2020

इस्लाम का नमाज़ शब्द संस्कृत के नमस् से बना है

इस्लाम धर्म की पूजा पद्धति का नाम सलात है। कुरान में इस्लामिक पूजा पद्धति को सलात की संज्ञा दी गई है। परंतु मुसलमान इसे नमाज़ के नाम से जानते हैं और  अल्लाह के सामने नमाज़ अदा करते हैं। नमाज़ शब्द संस्कृत शब्द नमस् (नमः) से बना है। नमस् का पहला उपयोग ऋग्वेद में हुआ है और इसका अर्थ है "आदर और भक्ति में ईश्वर के समक्ष झुक जाना"। गीता के ग्यारहवें अध्याय के इस श्लोक में भी इसका उल्लेख इसप्रकार है - "नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते"। 



इस संस्कृत भाषा से उत्पन्न शब्द नमस् की यात्रा भारत से प्रारम्भ हुई। जब यह नमस् शब्द ईरान पहुंची (जहाँ प्राचीन फ़ारसी अवेस्ता का प्रचलन था) तो नमस् शब्द का " स् " का उच्चारण " ज़ " में परिवर्तित हो गया और नमस् को नमाज़ कह कर सम्बोधित किया गया। 



गौरतलब है कि फारसी भाषा में लिपि " स् " नहीं होता है इस कारण से " स् " का स्थान " ज़ " ने ले लिया और इस प्रकार नमस् नमाज़ बन गया। इसप्रकार नमाज़ शब्द तुर्की, आज़रबैजान, तुर्केमानिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया और मलेशिया के मुसलामानों के दिलों में घर कर गई। 


इस लेख में दी गई जानकारी राशिफल गुरु के स्वयं का विचार नहीं है। बल्कि यह जानकारी न्यूज़ पेपर और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर दी गई है। परन्तु यदि किसी पाठक को ऐसा प्रतीत होता है कि इस लेख में दी गई जानकारी (लिखने में या समझने में) में कुछ कमी है या गलती है तो ऐसे पाठकों से नम्र निवेदन है कि आप अपना विचार कमेंट के माध्यम से हमें दें हम अवश्य उनके कॉमेंट के आधार पर अपने इस लेख में (आवश्यकता अनुसार) परिवर्तन करेंगे। राशिफल गुरु इस बिषय के सच या झूठ होने का दवा (प्रत्यक्ष, परोक्ष या अन्यथा) नहीं करता है।
Reference :
https://www.bbc.com/hindi/india-4040165
https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/azab+gazab-epaper-azabgaz/sanskrit+bhasha+se+nikali+hai+musalamano+ki+namaj+janie+kuch+aur+rochak+bate-newsid-69465009
https://www.newstodaycg.com/newstodaycg-the-word-namaz-comes-from-the-root-word-namah-in-sanskrit-it-means-to-bow-down/
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
https://hi.quora.com/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF
https://jagohindustani.wordpress.com/2017/06/27/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%86%E0%A4%88-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AE/

Wednesday 19 August 2020

चार धाम यात्रा एक कंट्रोवर्सी

चार धाम की यात्रा किसको माना जाए। 
मेरे पेरेंट्स (माता-पिता) ने चार धाम की यात्रा करने की इच्छा जाहिर की, परंतु मुझे चार धाम के बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए मैंने गूगल में सर्च करना शुरू किया कि चारधाम किसे कहते हैं और यह कहां स्थित है। मैंने गूगल पर सैकड़ों लेख पढ़ें, मैप देखें, अपने ओर से सारे प्रयत्न कर लिए इसके बाद कुछ शास्त्रों से भी संदर्भ लिया परंतु मेरी दुविधा खत्म नहीं हुई मेरी दुविधा निम्न प्रकार की है
१. भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा जिसे कि आजकल छोटी चार धाम की यात्रा कहते हैं।
गंगोत्री (गंगा नादि का उद्गम स्थल)
यमुनोत्री (यमुना नादि का उद्गम स्थल)
केदारनाथ (शिव ज्योतिर्लिंग का मंदिर)
बद्रीनाथ (विष्णु जी का मंदिर - जहाँ भगवान बिष्णु के अंश नर और नारायण की तपस्यास्थली है)
या फिर 
२. बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका को चार धाम की यात्रा माने। 
बद्रीनाथ जो कि भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण की तपोस्थली है वहां पर रामायण काल में अर्थात त्रेता युग में भगवान राम ने विष्णु भगवान की स्थापना की और मंदिर बनवाई थी जिसे बद्रीनाथ मंदिर (धाम) कहते हैं। 
त्रेता युग में ही श्री राम ने लंका पति रावण से युद्ध शुरू करने से पहले भारत के दक्षिणी छोर पर समुद्र के किनारे भगवान शिव का आवाहन किया था और शिवलिंग की स्थापना की थी जिसे आज रामेश्वरम कहते हैं। 
भगवान विष्णु के आदेश से मालवा के राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर भारत के पूर्वी तट पर समुद्र के किनारे बनवाया और भगवन बिष्णु की स्थापना की जिसे आज जगन्नाथ पूरी का मंदिर कहते हैं। 
करीब साढ़े चार सौ साल ईसा पूर्व आदि शंकराचार्य ने भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने के उद्देश्य से भारत के चार दिशाओं में चार धामों की स्थापना की। इसी शंदर्भ में आदि शंकराचार्य ने भारत के पश्चिमी तट पर समुद्र के किनारे द्वारका पुरी की स्थापना की। गौरतलब है कि यह द्वारकापुरी भगवान किस कृष्ण के द्वारा बनाई गई द्वारकापुरी द्वापर युग की द्वारकापुरी नहीं है। भगवान कृष्ण द्वारा बनाई गई द्वापर युग की द्वारकापुरी तो समुंदर में समागई (विलीन हो गई)। आज का द्वारकापुरी मात्र सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने के उद्देश्य से इसे एक धाम की संज्ञा दी गई है। 
इसप्रकार सतयुग में कोई भी धाम नहीं मिलता है त्रेता युग में दो धाम बनते हैं बद्रीनाथ और रामेश्वरम। द्वापर में हमें फिर से कोई धाम का निर्माण होते हुए नहीं दिखता है। द्वापर के बाद कलयुग में पुनः दो धाम का निर्माण किया जाता है। एक भगवान विष्णु के आदेश से भारत के पूर्वी तट पर मालवा के राजा इंद्रद्युम्न के द्वारा और दूसरा भारत के पश्चिमी तट पर एक धाम का निर्माण होता है वह है द्वारकापुरी जिसका निर्माण आदि शंकराचार्य द्वारा भारत की सांस्कृतिक एकता के उद्देश्य से किया जाता है। 
प्रिय पाठक गण इस लेख को पूरा करने का काम अब आपका है आप अपने कमेंट के माध्यम से इस लेख की कमियों को पूरा कर दीजिए आपसे यही हमारी विनती है। 
कृपा करके इस लेख को शेयर अवश्य करें जिससे कि दूसरे लोग भी इस लेख के बारे में अपने विचार व्यक्त कर सकें। 

Wednesday 12 August 2020

Controversy - रामभक्त हनुमानजी की तीन पत्नियां और एक पुत्र फिर भी कहलाते बाल ब्रह्मचारी

हम अक्सर कहते हैं बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी। बाल ब्रह्मचारी से मेरा तात्पर्य है कि जिसकी शादी नहीं हुई हो और जो किसी स्त्री के साथ का अनुभव न रखा हो। लेकिन क्या आपको पता है बाल ब्रह्मचारी, राम भक्त हनुमानजी (जिन्हे बजरंगबली, मारुती, पवनसुत, केशरीनंदन और अनेकों नाम से जाना जाता है और जो रामायण काव्य में एक मुख्य पात्र है) के बारे में कि हनुमान जी की तीन शादियां हुई थी। उनकी तीन पत्नियां थी व एक पुत्र था इसके बावजूद भी हनुमान जी एक बाल ब्रह्मचारी पुरुष थे। आइए इसके बारे में हम थोड़ा विस्तार से जान लें क्योंकि यह अत्यंत ही रुचिकर विषय है। 
उनके तीनों पत्नियों के नाम इस प्रकार थे 
सुवर्चला 
आनंगकुसुमा 
सत्यवती 
उनके पुत्र का नाम था मकरध्वज


सत्यता का प्रमाण
पराशर संहीता के अनुसार => हनुमान जी सूर्य देव के शिष्य थे और सूर्य देव ने ही हनुमान जी को विद्या प्रदान किया था। सूर्य देव को कुल 9 विद्या अपने शिष्य हनुमान जी को प्रदान करनी थी लेकिन इसमें से चार विद्या ऐसी थी जो किसी अविवाहित को प्रदान नहीं किया जा सकता था। परन्तु हनुमान जी ठहरे बाल ब्रह्मचारी  और उनके लिए विवाह करना संभव नहीं था और उनको सभी विद्या भी प्रदान भी करनी थी। ऐसी परिस्थिति में सूर्य देव व अन्य देवता गण ने सर्वसम्मति से उनके ब्रह्मचारी स्वरुप को ध्यान में रखते हुए ऐसी स्त्री का खोज करने लगे जोकि ब्रह्मचारी व तपस्वी हो और जिसे शादी विवाह में कोई रुचि ना हो। परंतु वह स्त्री जनकल्याण और सृष्टि की भलाई के उद्देश्य विवाह करने को तैयार हो। सूर्य देव की एक बाल ब्रह्मचारी व तपस्विनी पुत्री थी जिसका नाम था सुवर्चला। जब सुवर्चला पास इस प्रस्ताव को देवताओं ने लाया तो वह उस विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर ली और तत्पश्चात हनुमान जी और सुवर्चला का विवाह हो गया। इसके बाद सूर्य देव ने बाकी चार विद्याए हनुमान जी को सिखा दिए। इस विवाह का एकमात्र उद्देश्य लोकहित और सृष्टि की कल्याण से जुड़ा था। हनुमान जी ने यह विवाह विद्या प्राप्ति के उद्देश्य से किया था ना कि गृहस्थ जीवन जीने के उद्देश्य से। हनुमान जी इस विवाह के पूर्व भी ब्रह्मचारी थे और विवाह के पश्चात भी ब्रह्मचारी ही रहे। सुवर्चला विवाह के पश्चात पुनः अपने तपस्या में लीन हो गई। 

तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में एक सुप्रशिद्ध हनुमान मंदिर है जहां हनुमान जी व उनकी पत्नी देवी सुवर्चला एक साथ बिराजमान है यह दुनिया का एकमात्र हनुमान मंदिर जहां हनुमान जी को गृहस्थ जीवन में दिखाया गया है। पराशर संहीता में भी इस हनुमान मंदिर का वर्णन मिलता है।

पउम चरित (शाश्त्र) के अनुसार => एक बार वरुण देव और रावण के बीच युद्ध हुआ तो हनुमान जी वरुण देव की प्रतिनिधि के रूप में रावण से युद्ध किया और उसके सभी पुत्रों को बंदी बना लिया। इस इस युद्ध में रावण की हार हुई और वरुण देव युद्ध जीत गए। तत्पश्चात वरुण देव ने हनुमान जी की माता के पास (वरुण देव को यह ज्ञात था कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं) अपनी पुत्री सत्यवती के विवाह का प्रस्ताव रखा और माता के आदेश के कारण हनुमान जी को सत्यवती से विवाह करना पड़ा। परंतु इसके बाद वह सत्यवती को अपनी बाल ब्रह्मचारी और लोक कल्याण की भावना को बताकर स्वयं को उससे दूर किए और सदैव ब्रम्हचर्य का पालन करते रहे। 

रावण की एक दुहिता थी जिसका नाम था अनंगकुसुमा जो शिवजी की भक्त थी जब उसे पता चला कि हनुमान जी रुद्रावतार है तो वह हनुमान जी से विवाह करने की इच्छा राखी। तब रावण ने दो राष्ट्रों में मित्रता स्थापित करने के उद्देश्य से अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान जी से कराया। अनंगकुसुमा ने शिवजी की कृपा पाने के उद्देश्य से एक रुद्रावतार से विवाह कीया क्योंकि अनंगकुसुमा यह ज्ञात था कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी है। अतः नंगकुसुमा हनुमानजी से विवाह करने के पश्चात शिव भक्ति में लीन हो गई और हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी ही रहे। यह एक परिस्थिति की मांग थी जिसमें हनुमान जी को विवाह करना आवश्यक था।  


बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी के बारे में तो हम लोगों ने सब कुछ जान लिया कि उनके कितने विवाह हुए थे और कौन कौन उनकी पत्नियां थी। चलिए अब हम उनके पुत्र मकरध्वज के बारे में जानते हैं कि मकरध्वज की उत्पत्ति कब कहां और कैसे हुई। 
हम सभी को पता है रामायण के बारे में। बाल्मीकि रामायण में यह कहा गया है कि लंका दहन के बाद हनुमान जी जब अपने पूछ की आग को बुझाने के लिए समंदर में छलांग लगाई तो छलांग लगाने के समय उनके शरीर से पसीना बह रहा था और वह पसीना समंदर में टपक रहा था और उस पसीना को एक मछली आहार समझकर अपने मुंह में ले लिया और इसी पसीने की वजह से वह मछली गर्भ धारण कर ली। 
कुछ दिनों बाद पताललोक  (पाताल देश) के सैनिकों ने उस मछली को पकड़ लिया और अपने राजा अहिरावण के पास प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि अहिरावण रावण का मित्र था अहिरावण के सैनिकों ने उस मछली का वध किया तो उसके पेट में से एक बंदर जैसा बच्चा प्रकट हुआ (निकला) अहिरावण ने उस बच्चे को अपने राज्य का द्वारपाल नियुक्त कर दिया जब राम और लक्ष्मण को अहिरावण ने अपहरण करके पताल पूरी ले गया था और हनुमान जी राम और लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए जब पता लोक गए तो द्वारपाल के रूप में उनका सामना मकरध्वज से हुआ। यह वही बचा था जो मत्स्य के पेट से जन्म लिया था और जिसके चलते उसका नाम मकरध्वज पड़ा था। हनुमान जी ने अपना परिचय जब मकरध्वज दिया तब मकरध्वज बताया कि वह हनुमान जी का ही पुत्र है और उन्ही के पसीने से मकरध्वज की माता (मत्स्य) ने गर्भधारण किया था। जब अहिरावण का वध हो गया उस समय हनुमान जी मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त करके राम और लक्ष्मण को लेकर चले आए। अब यह सवाल उठता है कि रामायण काल के लंका को आज श्रीलंका कहते हैं परंतु यदि पाताल लोक भी था तो उसे आजकल हम क्या कहते हैं। जी हां चलिए हम जानते हैं कि रामायण काल के पताल लोक को आज हम किस नाम से जानते हैं और यह कहां स्थित है। 
रामायण काल का पताल लोक आज मध्य अमेरिकी महाद्वीप में पूर्वोत्तर होंडुरास के जंगलों के नीचे दफन है।


इसकी खोज में 3डी मैपिंग का सहारा लिया गया है और इस तकनीक के सहारे जमीन के अंदर छिपी हुई वस्तुओं को देखा जा सकता है। हालाँकि यह खोज अभी जारी है और कुछ रोचक बातों का पता चलना अभी बाकि है। 

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लकी नंबर ७८६ का अर्थ

इस्लाम धर्म में 786 का मतलब => "बिस्मिल्लाह उर रहमान ए रहीम" होता है अर्थात् अल्लाह का नाम

कुल संख्यात्मक मूल्य (total numerological value)  => इस्लाम धर्म में ‘बिस्मिल्लाह’, यानी कि अल्लाह के नाम को 786 अंक से जोड़कर देखा जाता है इसलिए मुसलमान इसे पाक अर्थात पवित्र एवं भाग्यशाली मानते हैं। कहते हैं यदि ‘बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम’ को अरबी या उर्दू भाषा में लिखा जाए और उन शब्दों के संख्यात्मक मूल्यों को जोड़ा जाए तो योग 786 आता है।



कुरआन => गौरतलब है कि "बिस्मिल्लाह उर रहमान ए रहीम" का प्रतिक चिन्ह या अंक ७८६ है ऐसा कुरआन में कहीं नहीं बताया गया है। परन्तु चूँकि ७८६ "बिस्मिल्लाह" के कुल अंकों का योग है। इसी कारन से ७८६ को भाग्यशाली अंक (लकी नंबर) मानाजाता है।

७८६ का जन्म => 786 का जन्म न्यूमैरोलॉजी से हुआ। जब इस्लाम हिंदुस्तान में दस्तक दिया तो हिंदुस्तान के न्यूमैरोलॉजी के विद्वानों ने न्यूरोलॉजी के माध्यम से इस अंक का जन्म दिया यही कारण है कि 786 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के आसपास के देश के लोग इस अंक को लकी नंबर मानते हैं। जबकि अरब देश के लोग (जहां से कि इस्लाम की शुरुआत हुई) ऐसा नहीं मानते हैं ।



एकता का प्रतीक 786
अंक ज्योतिष के अनुसार 786 को परस्पर जोड़ने पर (7+8+6=21) 21 प्राप्त होता है। अब यदि 21 को भी परस्पर जोड़ा जाए तो 3 प्राप्त होता है। तीन को करीब-करीब सभी धर्मों में शुभ अंक माना जाता है। इस्लाम धर्म में तीन अल्लाह, पैगम्बर और नुमाइंदे की संख्या भी तीन। इसी तरह हिंदू धर्म में तीन महाशक्तियां ब्रह, विष्णु महेश। इसलिए इसे कुदरत की शक्ति के रूप में एकता का प्रतीक माना गया है।




ओम और अल्लाह के लिखावट में सम्बन्ध




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