Wednesday 12 August 2020

Controversy - रामभक्त हनुमानजी की तीन पत्नियां और एक पुत्र फिर भी कहलाते बाल ब्रह्मचारी

हम अक्सर कहते हैं बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी। बाल ब्रह्मचारी से मेरा तात्पर्य है कि जिसकी शादी नहीं हुई हो और जो किसी स्त्री के साथ का अनुभव न रखा हो। लेकिन क्या आपको पता है बाल ब्रह्मचारी, राम भक्त हनुमानजी (जिन्हे बजरंगबली, मारुती, पवनसुत, केशरीनंदन और अनेकों नाम से जाना जाता है और जो रामायण काव्य में एक मुख्य पात्र है) के बारे में कि हनुमान जी की तीन शादियां हुई थी। उनकी तीन पत्नियां थी व एक पुत्र था इसके बावजूद भी हनुमान जी एक बाल ब्रह्मचारी पुरुष थे। आइए इसके बारे में हम थोड़ा विस्तार से जान लें क्योंकि यह अत्यंत ही रुचिकर विषय है। 
उनके तीनों पत्नियों के नाम इस प्रकार थे 
सुवर्चला 
आनंगकुसुमा 
सत्यवती 
उनके पुत्र का नाम था मकरध्वज


सत्यता का प्रमाण
पराशर संहीता के अनुसार => हनुमान जी सूर्य देव के शिष्य थे और सूर्य देव ने ही हनुमान जी को विद्या प्रदान किया था। सूर्य देव को कुल 9 विद्या अपने शिष्य हनुमान जी को प्रदान करनी थी लेकिन इसमें से चार विद्या ऐसी थी जो किसी अविवाहित को प्रदान नहीं किया जा सकता था। परन्तु हनुमान जी ठहरे बाल ब्रह्मचारी  और उनके लिए विवाह करना संभव नहीं था और उनको सभी विद्या भी प्रदान भी करनी थी। ऐसी परिस्थिति में सूर्य देव व अन्य देवता गण ने सर्वसम्मति से उनके ब्रह्मचारी स्वरुप को ध्यान में रखते हुए ऐसी स्त्री का खोज करने लगे जोकि ब्रह्मचारी व तपस्वी हो और जिसे शादी विवाह में कोई रुचि ना हो। परंतु वह स्त्री जनकल्याण और सृष्टि की भलाई के उद्देश्य विवाह करने को तैयार हो। सूर्य देव की एक बाल ब्रह्मचारी व तपस्विनी पुत्री थी जिसका नाम था सुवर्चला। जब सुवर्चला पास इस प्रस्ताव को देवताओं ने लाया तो वह उस विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर ली और तत्पश्चात हनुमान जी और सुवर्चला का विवाह हो गया। इसके बाद सूर्य देव ने बाकी चार विद्याए हनुमान जी को सिखा दिए। इस विवाह का एकमात्र उद्देश्य लोकहित और सृष्टि की कल्याण से जुड़ा था। हनुमान जी ने यह विवाह विद्या प्राप्ति के उद्देश्य से किया था ना कि गृहस्थ जीवन जीने के उद्देश्य से। हनुमान जी इस विवाह के पूर्व भी ब्रह्मचारी थे और विवाह के पश्चात भी ब्रह्मचारी ही रहे। सुवर्चला विवाह के पश्चात पुनः अपने तपस्या में लीन हो गई। 

तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में एक सुप्रशिद्ध हनुमान मंदिर है जहां हनुमान जी व उनकी पत्नी देवी सुवर्चला एक साथ बिराजमान है यह दुनिया का एकमात्र हनुमान मंदिर जहां हनुमान जी को गृहस्थ जीवन में दिखाया गया है। पराशर संहीता में भी इस हनुमान मंदिर का वर्णन मिलता है।

पउम चरित (शाश्त्र) के अनुसार => एक बार वरुण देव और रावण के बीच युद्ध हुआ तो हनुमान जी वरुण देव की प्रतिनिधि के रूप में रावण से युद्ध किया और उसके सभी पुत्रों को बंदी बना लिया। इस इस युद्ध में रावण की हार हुई और वरुण देव युद्ध जीत गए। तत्पश्चात वरुण देव ने हनुमान जी की माता के पास (वरुण देव को यह ज्ञात था कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं) अपनी पुत्री सत्यवती के विवाह का प्रस्ताव रखा और माता के आदेश के कारण हनुमान जी को सत्यवती से विवाह करना पड़ा। परंतु इसके बाद वह सत्यवती को अपनी बाल ब्रह्मचारी और लोक कल्याण की भावना को बताकर स्वयं को उससे दूर किए और सदैव ब्रम्हचर्य का पालन करते रहे। 

रावण की एक दुहिता थी जिसका नाम था अनंगकुसुमा जो शिवजी की भक्त थी जब उसे पता चला कि हनुमान जी रुद्रावतार है तो वह हनुमान जी से विवाह करने की इच्छा राखी। तब रावण ने दो राष्ट्रों में मित्रता स्थापित करने के उद्देश्य से अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान जी से कराया। अनंगकुसुमा ने शिवजी की कृपा पाने के उद्देश्य से एक रुद्रावतार से विवाह कीया क्योंकि अनंगकुसुमा यह ज्ञात था कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी है। अतः नंगकुसुमा हनुमानजी से विवाह करने के पश्चात शिव भक्ति में लीन हो गई और हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी ही रहे। यह एक परिस्थिति की मांग थी जिसमें हनुमान जी को विवाह करना आवश्यक था।  


बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी के बारे में तो हम लोगों ने सब कुछ जान लिया कि उनके कितने विवाह हुए थे और कौन कौन उनकी पत्नियां थी। चलिए अब हम उनके पुत्र मकरध्वज के बारे में जानते हैं कि मकरध्वज की उत्पत्ति कब कहां और कैसे हुई। 
हम सभी को पता है रामायण के बारे में। बाल्मीकि रामायण में यह कहा गया है कि लंका दहन के बाद हनुमान जी जब अपने पूछ की आग को बुझाने के लिए समंदर में छलांग लगाई तो छलांग लगाने के समय उनके शरीर से पसीना बह रहा था और वह पसीना समंदर में टपक रहा था और उस पसीना को एक मछली आहार समझकर अपने मुंह में ले लिया और इसी पसीने की वजह से वह मछली गर्भ धारण कर ली। 
कुछ दिनों बाद पताललोक  (पाताल देश) के सैनिकों ने उस मछली को पकड़ लिया और अपने राजा अहिरावण के पास प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि अहिरावण रावण का मित्र था अहिरावण के सैनिकों ने उस मछली का वध किया तो उसके पेट में से एक बंदर जैसा बच्चा प्रकट हुआ (निकला) अहिरावण ने उस बच्चे को अपने राज्य का द्वारपाल नियुक्त कर दिया जब राम और लक्ष्मण को अहिरावण ने अपहरण करके पताल पूरी ले गया था और हनुमान जी राम और लक्ष्मण को छुड़ाने के लिए जब पता लोक गए तो द्वारपाल के रूप में उनका सामना मकरध्वज से हुआ। यह वही बचा था जो मत्स्य के पेट से जन्म लिया था और जिसके चलते उसका नाम मकरध्वज पड़ा था। हनुमान जी ने अपना परिचय जब मकरध्वज दिया तब मकरध्वज बताया कि वह हनुमान जी का ही पुत्र है और उन्ही के पसीने से मकरध्वज की माता (मत्स्य) ने गर्भधारण किया था। जब अहिरावण का वध हो गया उस समय हनुमान जी मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त करके राम और लक्ष्मण को लेकर चले आए। अब यह सवाल उठता है कि रामायण काल के लंका को आज श्रीलंका कहते हैं परंतु यदि पाताल लोक भी था तो उसे आजकल हम क्या कहते हैं। जी हां चलिए हम जानते हैं कि रामायण काल के पताल लोक को आज हम किस नाम से जानते हैं और यह कहां स्थित है। 
रामायण काल का पताल लोक आज मध्य अमेरिकी महाद्वीप में पूर्वोत्तर होंडुरास के जंगलों के नीचे दफन है।


इसकी खोज में 3डी मैपिंग का सहारा लिया गया है और इस तकनीक के सहारे जमीन के अंदर छिपी हुई वस्तुओं को देखा जा सकता है। हालाँकि यह खोज अभी जारी है और कुछ रोचक बातों का पता चलना अभी बाकि है। 

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