Tuesday 3 March 2015

शरीर पर छिपकली गिरने के रहस्य

शास्त्रों में छिपकली से जुड़े शकुन-अपशकुनों के बारे में बताया गया है। ये माना जाता है कि इंसान के शरीर के कुछ हिस्सों पर छिपकली के गिरने से शुभ फल की प्राप्ति होती है, वहीं कुछ हिस्सों पर छिपकली का गिरना परेशानियां लेकर आता है। साधारणतः पेट, नाभि, छाती व दाढ़ी को छोड़कर ,मस्तक समेत अन्य अंगों पर छिपकली का गिरना सामान्यतः शुभ होता है। 


जब कभी शरीर पर छिपकली गिर जाती है तो अपशकुन निवारणार्थ हेतु

अभिजीत महूर्त


अभिजीत महूर्त,
अभिजीत मुहूर्त को श्रेष्ठ मुहूर्तों के श्रेणी में रखा गया है। अभिजीत मुहूर्त दिन के समय का सबसे शुभ समय माना गया है जो की लगभग 48 मिनट (अर्थात 12 घंटा X 60 मिनट = 720 मिनट / 15 मुहूर्त्त ) का होता है। अभिजीत मुहूर्त दोषो और बाधाओं को समाप्त करता है। जिससे की किसी भी प्रकार का शुभ काम सफलता पूर्वक संपन्न हो।

अभिजीत मुहूर्त किसी भी शुभ कार्य के लिये जाना जाता है। दिन के समय में कोई भी शुभ काम को करने के लिये अभिजीत मुहूर्त श्रेष्ठ समय होता है।

अभिजीत मुहूर्त सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच सबसे अच्छे सिद्ध होने वाले मुहूर्तों में से एक शुभ मुहूर्त है। सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच के समय अंतराल को 15 बराबर भागों

राहु काल


ज्योतिष में राहु काल को अशुभ समय माना गया है। इस काल में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य का प्रारम्भ नहीं किया जाता है। अतः आप से निवेदन है की कोई भी शुभ कार्य करने के पहले यह शुनिश्चित कर लें की उक्त समय राहुकाल से पहले या बाद का हो। राहुकाल का समय ९० मिनट का होता है और प्रत्येक दिन निश्चित समय पर ही होता है जो की निम्न है। 

प्रस्त‍ुत हैं वार के अनुसार राहु काल का समय

रविवार : सायं 4:30 से 6:00 बजे तक।

सोमवार : प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक।

मंगलवार : अपराह्न 3:00 से 4:30 बजे तक।

बुधवार : दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक।

गुरुवार : दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तक।

शुक्रवार : प्रात:10:30 से दोपहर 12:00 तक।

शनिवार : प्रात: 9:00 से 10:30 बजे तक।

जानिये क्या कहता है आपके शरीर का तिल - शरीर पर तिल का रहस्य


ज्योतिष के अनुसार शरीर के  अलग-अलग स्थान (अंग) पर तिल का अलग-अलग महत्व होता है| ये मनुष्य के स्वभाव, व्यक्तित्व और भविष्य के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। आइये जानने की कोशिश करते हैं कि शरीर के किस अंग पर तिल किस प्रकार का फल देता है।

सिर पर तिल का होना
१ सिर पर तिल का होना यह दर्शाता है कि वह व्यक्ति बहुत ही मोटिवेटेड व अपने लक्ष्य को हासिल करने की असीम क्षमता रखता है। जिन लोगों के सिर पर तिल होता है वह अपने लक्ष्य को हासिल करके रहते हैं|

२ सिर के बाएँ ओर तिल होने से व्यक्ति की शादी बहुत देरी से होती है अथवा आजीवन शादी नहीं होती।

३ सिर के दाएँ ओर तिल होने से व्यक्ति को बहुत प्रसिद्धि और यश मिलता है। वह व्यक्ति  ईमानदार, जिम्मेदार, व उच्च पदों को प्राप्त करनेवाला व सँभालने वाला होता है।

४ सिर के मध्य में तिल होने से व्यक्ति अपने जीवन में धन और सुख प्राप्त करता है।

माथे पर तिल का होना
१. पुरुषों के माथे के मध्य में तिल लक्ष्य प्राप्ति में सफलता को दर्शाता है हालाँकि ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत आता है। महिलाओं के माथे के मध्य में तिल लक्ष्य प्राप्ति में समस्या उत्पन्न करता है।

२.   पुरुषों के माथे के दाएँ ओर तिल होने से उन्हें ३० की आयु के बाद धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। महिलाओं के माथे के दाएँ ओर तिल होने से उनके जीवन में सदैव धन और समृद्धि बानी रहती है।
३. पुरुषों के माथे के बाएँ ओर तिल होने से उनका जीवन तनाव में व्यतीत होता है परन्तु जीवन में कामयाबी अवश्य। महिलाओं के माथे के बाएँ ओर लाल तिल होने से वह दिल की साफ़ किंतु कला तिल होने से ठीक उसका उल्टा होता है।


कनपटी पर तिल का होना

१. तिल का कनपटी के किसी भी तरफ होना अनपेक्षित धन और यश का चिन्ह होता है।

२. पुरुष की दायिनी कनपटी पर तिल होने से जल्दी विवाह और सुन्दर पत्नी की प्राप्ति होती है। स्त्री के कनपटी पर तिल आँख के ऊपरी हिस्से के करीब होने से उसके महान और सकारात्मक व्यक्तित्वा को दर्शाता है।


चेहरे पर तिल का होना

१. स्त्री के चेहरे के निचले हिस्से पर तिल का होना शुभ माना जाता है किंतु लाल रंग का तिल उस स्त्री के डोमिनेटिंग स्वभाव को, काले रंग का तिल उसके मजबूत व्यक्तित्व तथा चहरे पर भूरे रंग का तिल का होना उसके अनुकूल और उदार व्यक्तित्व को दर्शाता है |

२. स्त्री के चेहरे के दाएँ ओर तिल होने से उसे जीवन में खुश रहने के लिए दुविधाओं से जूझना पड़ता है। काले रंग का तिल वित्तीय समस्याओं को  तथा  लाल या भूरे रंग का तिल रिश्ते में समस्याओं को दर्शाता है।


नाक पर तिल का होना


१. पुरुष के नाक की टिप पर तिल होने से व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली होता है व उसे हर कदम पर कामयाबी मिलती है| नाक के दाएँ ओर तिल होने से व्यक्ति घूमने का शौंकीन  होता है।  नाक के बाएँ ओर तिल होने से व्यक्ति को समझना बेहद ही मुश्किल होता है, ऐसे लोग विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित  तथा जीवन में कामयाब भी होते है। स्त्री के नाक की टिप पर तिल का होने से वह दृढ़ इच्छा शक्ति, तेज़ दिमाग तथा  पति से  प्रेम व सहानुभूति प्राप्त करनेवाली होती है। लाल रंग का तिल होने से आजीवन धन की कमी नहीं होती।

२. पुरुष के नाक की टिप के नीचे तिल होने से जीवन में व्यावसायिक और आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ता है। स्त्री के नाक की टिप के नीचे तिल होने से उसे अपने अस्वस्थ्य पति का देखभाल करना पड़ता है।

३. स्त्री के नाक के दाएँ ओर तिल होने से सुखद दांपत्य जीवन, नाक के बाएँ ओर या नाक और चहरे के मध्य में तिल होने से आजीवन खुसी व आनंद मिलता है|



भौहों पर तिल का होना
१. पुरुष के भौहों के बीच में तिल शुभफल दायी, यश और सुखों की प्राप्ति होता है। स्त्री के भौहों के मध्य तिल होने से वैवाहिक जीवन मंगलमय और खुशद होता है।

२. पुरुष की बाईं भौह पर तिल होने से वह ज़िद्दी स्वभाव का तथा दाईं भौह पर तिल होने से वह कामयाब व धनवान होता है।

३. व्यक्ति की भौह पर तिल माथे के करीब होने से जीवन में कठिन परिश्रम से कामयाबी हासिल होता है।



आँख पर तिल का होना
१. व्यक्ति की किसी भी आँख के अंदर तिल होने से वह बहुत आकर्षक होता है|

२. पुरुष की किसी भी आँख पर तिल होने से वह बहुत ही ख़र्चीला होता है|

३. आँख के बाहरी कोने पर तिल  होने से वह बहुत नरम स्वभाव का होता है|

४. पुरुष की दाईं पलक पर तिल  होने से वह आर्थिक रूप से स्थिर बाईं पलक पर तिल होता है वह सुखद जीवन व्यतीत करता है|

५. निचली पलक की ओर तिल होने से कठिन परिश्रम के बाद सफलता मिलता है।


कान पर तिल का होना
१. किसी भी कान पर तिल होने से व्यक्ति जीवन पर्यन्त आर्थिक रूप से समृद्ध रहता है।

२. दोनों कानों पर तिल होने से व्यक्ति जीवन में प्रसिद्धि प्राप्त करता है व महंगी वस्तुओं का शौंक रखता है।

३. किसी भी कान के पीछे तिल होने से सुखी जीवन तथा मन चाहा जीवन साथी प्राप्त होता है।

४. कान के निचली पाली पर तिल होने से आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है किन्तु अंत में जीवन सुखी होता है। कान के ऊपरी  पाली पर तिल होने से दोस्तों, सहयोगियों और परिवारजनों से बहुत प्रेम और इज़्ज़त मिलती है तथा कान के पाली मध्य तिल होने से व्यक्ति पारंपरिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक विचारों वाला होता है।



होंठ पर तिल का होना
१. स्त्री के ऊपरी होंठ पर तिल होने से सुन्दर स्वभाव व सुखी जीवन, निचले होंठ पर तिल होने से महंगी वस्तुओं का सेवन व आरामदायक जीवन होती है।

२. पुरुष के ऊपरी होंठ पर तिल होने से बड़ी दिलचस्प बातें करनेवाला तथा निचले होंठ पर तिल होने से महंगी वस्तुओं का सेवन व आरामदायक जीवन होता है।

गालों पर तिल का होना
१. स्त्री के गाल पर तिल का होना सुंदरता का प्रतीक, सुन्दर वर व परिवार से प्रेम मिलता है।

२. पुरुष के बाएँ गाल पर तिल यश, समृद्धि, और सुखद जीवन का प्रतीक होता है।

३. स्त्री के दाएँ गाल पर तिल पुत्र सुख का प्रतिक होता है तथा बाएँ गाल पर तिल सकारात्मक जीवन को दर्शाता है, हरे रंग का तिल आभूषण व धन के सुख का प्रतिक, लाल रंग का तिल अच्छी आर्थिक स्तिथि को दर्शाता है,  काले रंग का तिल प्रेम विवाह व पुत्री सुख को बताता है तथा भूरे रंग का तिल भव्य और आरामदायक जीवन को दर्शाता है।

४. कान और गाल के मध्य में तिल होने से व्यक्ति के शुरुआती दिनों में साधारण जीवन किन्तु मध्यान्ह के वाद यश और अमीरी का जीवन व्यतीत कर सकता है|

जीभ पर तिल का होना
१.जीभ पर तिल होने से  सेहत की समस्या, शिक्षा में समस्या होता है। जीभ की नोक पर तिल होने से कूटनीतिज्ञ व खाने के शौक़ीन होते हैं।

२. स्त्री की जीभ पर तिल होने से संगीत शौंक व खुशमय जीवन मिलता है|

३. स्त्री के जीभ की निचली ओर तिल होने से धार्मिक विचार की होती है|

४. जीभ के दाईं ओर तिल होने से बातों का शौकीन होता है|

ठोड़ी पर तिल का होना
१. ठोड़ी के मध्य में तिल  होने से मन का साफ व यात्रा पसंद होता है।

२. ठोड़ी के दाहिने हिस्से में तिल वाला व्यक्ति तर्कवादी और कूटनीतिक होता है।

३. ठोड़ी पर बाईं ओर तिल हो तो वह व्यक्ति बहुत ही ईमानदार, मेहनती और स्पष्टवादी होता है।

४. ठोड़ी के निचले हिस्से पर तिल होने से व्यक्ति बुद्धिमान व संगीत प्रेमी होता है।

जबड़े पर तिल का होना
१. स्त्री के दाएँ जबड़े पर तिल होने से लक्ष्य प्राप्ति में समस्या। पुरुष के दाएँ जबड़े पर तिल होने से यश और खुशियों की प्राप्ति होती है।

२.  स्त्री के बाएँ जबड़े पर तिल होने से वह कलात्मक व रचनात्मक होती है। पुरुष के बाएँ जबड़े पर तिल होने से कामयाबी में समस्या।



गर्दन पर तिल का होना

१. गर्दन की दोनों ओर तिल होने से जीवन में समस्या और दुख होता है।

२. गर्दन पर ठीक सामने तिल होने से भाग्यशाली और कला से निपुण।

३. गर्दन के पीछे वाले भाग पर तिल का होना व्यक्ति के क्रोधी स्वभाव को दर्शाता है।

कंधे पर तिल का होना
१. कंधे पर तिल व्यक्ति के कोमल और विचारशील व्यक्तित्व को दर्शाता है|

२. स्त्री के कंधे पर लाल रंग का तिल पुत्र सुख की प्राप्ति व सुखी जीवन को दर्शाता है।

३. बाएँ कंधे पर तिल होने से व्यक्ति अपने लक्ष्यों को लेकर बेहद निर्धारित और महत्वाकांक्षी होता है|

४. दाएँ कंधे पर तिल होने से व्यक्ति साहसी और बुद्धिमान होता है।


छाती पर तिल का होना
१. स्त्री और पुरुष की छाती पर तिल होने से उनका दिमाग बहुत व वे अपने विचारों को सही मायने से प्रस्तुत करने की क्षमता रखते हैं। ये अपने साथी की ओर ईमानदार और सच्चे होते हैं किन्तु कई बार इन्हें समझना मुश्किल होता है।

३. स्त्री की दाईं छाती पर तिल खुशहाल जीवन का संकेत करता है।  लाल रंग का तिल अधिक पुत्रों की प्राप्ति तथा भूरे या काले रंग के तिल सुखमय जीवन का संकेत देता है।

४. स्त्री की बाईं छाती पर तिल उसके तीव्र और कामुक स्वभाव को दर्शाता है।

५. पुरुष की बाईं छाती पर तिल होने से वह बेहद आकर्षक होता है तथा सुखी जीवन जीता है।

६. पुरुष की दाईं छाती पर तिल होने से वह बहुत बुद्धिमान होता है।


नाभी और पेट पर तिल का होना
१. स्त्री के पेट पर तिल उसे अच्छे वर व संतान की प्राप्ति को दर्शाता है। पुरुष के पेट पर तिल होने से उसे जीवन में कामयाबी व यश की प्राप्ति होती है।

२. स्त्री के पेट पर ठीक छाती के नीचे तिल होने से वह जीवन व्यतीत करती है। स्त्री के पेट पर ठीक बाईं छाती पर भूरे रंग का तिल होने से उसे कठिन परिश्रम के वाद कामयाबी हासिल।

३. नाभी पर तिल  होने से व्यक्ति खाने पीने का बहुत शौकीन व आनंदमय जीवन व्यतीत करता है।


पीठ पर तिल का होना

१. पीठ पर तिल होने से अच्छा जीवन तथा प्रियजनों व दोस्तों के साथ सम्बन्ध बेहद ही अच्छे होते हैं|

२. पीठ पर भूरे रंग का तिल होने से कठिन परिश्रम के बाद सफलता।


कमर पर तिल का होना

१. स्त्री की कमर पर तिल होने सेउसे लंबे समय के लिए पढ़ाई करने का अवसर मिलता है।

२. पुरुष की कमर पर तिल होने से उसका ज़्यादा समय अपने परिवार और दोस्तों के साथ व्यतीत करता है।

३. कमर की बाईं तरफ तिल होने से परिवार के किसी न किसी सदस्य की सेहत को लेकर चिंतित रहता पड़ता है।


बाजू पर तिल का होना
१. पुरुष की दाईं बाजू पर तिल होने से  किस्मत बहुत अच्छी होती है।

२. स्त्री की दाईं बाजू पर तिल होने से जीवन समृद्धि और संतोषपूर्ण होता है।

३. पुरुष की बाईं बाजू पर तिल होने से  व्यापार में कामयाबी।

४. स्त्री की बाईं बाजू पर तिल होने से अपने पति, बच्चों और परिवार के प्रति बहुत प्रेम होता है।

५. बाजू के ऊपर के हिस्से की तरफ तिल का होना साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक होता है।

कोहनी पर तिल का होना
१. जिस पुरुष की दाईं कोहनी पर तिल होता है उसका जीवन शांतिपूर्वक और ख़ुशी से व्यतीत होता है।

२. जिस स्त्री की दाईं कोहनी पर तिल होता है उसका व्यक्तित्व सांगठनिक, कौशल और सशक्त होता है।

३. जिस पुरुष की बाईं कोहनी पर तिल होता है उसका व्यक्तित्व भावुक होता है।

४. जिस स्त्री की बाईं कोहनी पर तिल होता है वह एक अच्छी पत्नी साबित होती है।

कलाई पर तिल का होना
१. जिस स्त्री की दाईं कलाई पर तिल होता है वह एक बुद्धिमान और एक परिपूर्ण अभिनेत्री साबित होती है।

२. जिस पुरुष की दाईं कलाई पर तिल होता है वह समाज में अच्छा नाम और इज़्ज़त कमाता है।

३. जिस स्त्री की बाईं कलाई पर तिल होता है वह एक अच्छी ग्रहिणी साबित होती है।

४. जिस पुरुष की बाईं कलाई पर तिल होता है वह अमीर और उदार होता है।


हथेली पर तिल का होना

१. दाईं हथेली के मध्य में तिल होने से व्यक्ति को नाम, यश तथा पड़ोसियों व रिश्तेदारों से प्यार पता है।

२. बाई हथेली के मध्य में तिल का होना धन और समृद्धि का प्रतीक है।


हाथ के पीछे तिल का होना
१. स्त्री के दाएँ हाथ के पीछे तिल होने से वह समझदार व अच्छा जीवन व्यतीत करती है।

२. पुरुष के दाएँ हाथ के पीछे तिल होने से वह बुद्धिमान तथा एक कामयाब व्यापारी होता है।

३. पुरुष के बाएँ हाथ के पीछे तिल होने से वह समझदार व अच्छा जीवन व्यतीत करता है।

४. स्त्री के बाएँ हाथ के पीछे तिल होने से वह बहुत मेहनती व अपने परिवार का ध्यान रखनेवाली होती है।



पैरों पर तिल का होना
१. दाएँ पैर पर तिल का होना बुद्धि और शैक्षणिक सफलता का प्रतीक होता है।

२. बाएँ पैर पर तिल का होना सफलता का प्रतीक होता है।

३. पुरुष के दाएँ पैर पर तिल होने से वह बहुत बुद्धिमान और सुलझा हुआ होता है। बाएँ पैर पर तिल होने से वह परम्पराओं को न मानाने वाला व उदार होता है। बाएँ पैर पर बाईं ओर तिल का होने से घूमने का शौकीन व रोगों से ग्रस्त रहता है।

४. स्त्री के दाएँ पैर पर तिल होने से वह बहुत ही खुशहाल जीवन व्यतीत करती है और उसके बहुतसारे चाहने वाले होते हैं। दाएँ पैर पर बाईं ओर तिल होने से वह धार्मिक विचार व घूमने का शौंक रखती है। दोनों पैरों पर तिल का होना अप्रत्याशित घटनाओं की तरफ संकेत करता है। स्त्री के बाएँ पैर पर बाईं ओर तिल उसके मेहनती होने का प्रतीक है।




एड़ियों पर तिल का होना

१. स्त्री के दाएँ पैर की दाईं एड़ी पर तिल उसके व्यस्तता व अति परिश्रमी होने को दर्शाता है।  पुरुष के दाएँ पैर की दाईं एड़ी पर तिल का होना अध्यात्मवाद व अच्छे स्वभाव को दर्शाता है।

२. स्त्री के बाएँ पैर की बाईं एड़ी पर तिल उसके बहुत बातूनी होने को दर्शाता है।
पुरुष की बाईं एड़ी पर दाईं ओर तिल का होना उसके अच्छे व्यक्तित्व का द्योतक है।  स्त्री की बाईं एड़ी पर दाईं ओर तिल का होना उसके मन-भावन व्यक्तित्व का द्योतक है।

३. पुरुष की दाईं एड़ी पर बाईं ओर तिल का होना उसके दृढ़ संकल्प का प्रतिक है। स्त्री की दाईं एड़ी पर बाईं ओर तिल का होना उसके साहसी, बुद्धिमान, प्यार करने और सम्मान से रहने वाली स्त्री का प्रतिक है।


टांगों पर तिल का होना

१. स्त्री की दाईं टांग पर तिल उसे बहुत बातूनी बनता है। पुरुष की दाईं टांग पर तिल उसे बहुत दिमागी व एक अच्छा व्यापारी बनता है।

२. स्त्री की बाईं टांग पर तिल होने से वह एक अच्छी पत्नी साबित होती और पति का साथ देती है। पुरुष की बाईं टांग पर तिल होने से वह बहुत बुद्धिमान और बलवान होता है।


घुटनों पर तिल का होना

१. दाएँ घुटने पर तिल अच्छे परिवार, बच्चे, पति, पत्नी व सुखी जीवन का द्योतक है।

२. पुरुष के बाएँ घुटने पर तिल उसके अत्यंत जिद्दी स्वभाव व गुस्से का द्योतक है। स्त्री के बाएँ घुटने पर तिल पुत्र सुख की प्राप्ति का द्योतक है।


नाखूनों पर तिल का होना
१. पहली ऊँगली के नाख़ून पर सफ़ेद रंग का दाग सफलता को व काले रंग का दाग समस्या और अड़चन को दर्शाता है।

२. मध्य वाली ऊँगली के नाख़ून पर सफ़ेद रंग का दाग है तो अल्पअवधि में कामयाबी तथा काले रंग का तिल है तो  कठोर परिश्रम से कामयाबी मिलता है।

३. अनामिका या सूर्य ऊँगली पर तिल यश, अमीरी और समृद्धि देता है परन्तु यदि दाग काले रंग का है तो कठोर परिश्रम से यश और समृद्धि मिलती है।

४. कनिष्ठा या छोटी ऊँगली के नाख़ून पर सफ़ेद तिल उच्च शिक्षा में सफलता का सूचक है परन्तु काले रंग का तिल रोगग्रस्त बनता है।

५. अंगूठे के नाख़ून पर सफ़ेद तिल कामयाब व्यापारी का द्योतक है। काले रंग का तिल होने से मित्रों से धोखा मिलता है।


उंगलियों पर तिल का होना
१. दाएँ हाथ की पहली ऊँगली पर तिल होने से पुरुष या स्त्री बहुत बुद्धिमान, अमीर व सुलझे होते है। पुरुष के बाएँ हाथ की पहली ऊँगली पर तिल उसके आधिकारिक और कमांडिंग स्वभाव का द्योतक होता है। स्त्री के बाएँ हाथ की पहली ऊँगली पर तिल उसके रचनात्मक चीज़ो (जैसे कला, संगीत आदि ) में बेहद रूचि को दर्शाता है।

२. पुरुष के दाएँ हाथ की मध्य ऊँगली पर तिल यश दिलाता है। स्त्री के दाएँ हाथ की मध्य ऊँगली पर तिल कठोर परिश्रम करवाता है। पुरुष के बाएँ हाथ की मध्य ऊँगली पर तिल उसे सकारात्मक स्वभाव देता है। स्त्री के बाएँ हाथ की मध्य ऊँगली पर तिल उसे धनवान बनता है।

३. स्त्री के बाएँ हाथ के अंगूठे पर तिल बहुत नाम और यश देता है। पुरुष के बाएँ हाथ के अंगूठे पर तिल उसे व्यापारिक काबिलियत देता है। स्त्री के दाएँ हाथ के अंगूठे पर तिल उसे सामाजसेवी बनता है। पुरुष के दाएँ हाथ के अंगूठे पर तिल उसे बहुत ही कौशल और संगठनात्मक होता है।

४. पुरुष के दाएँ हाथ की छोटी ऊँगली पर तिल उसे घूमने और खाने पीने का शौक़ीन बनता है। स्त्री के दाएँ हाथ की छोटी ऊँगली पर तिल उसे बहुत ही आकर्षित बनाता है जिससे उसके बहुत चाहने वाले हैं।

५. स्त्री के बाएँ हाथ की छोटी ऊँगली पर तिल उसे जीवन में यश और समृद्धि दिलाता है। पुरुष के बाएँ हाथ की छोटी ऊँगली पर तिल उसे लक्ष्य प्राप्ति में बाधा खड़ा करता है।



ग्रहों की दृष्टि द्वारा उत्पन्न रोग

ज्योतिष के अनुसार रोग की उत्पत्ति ग्रह, नक्षत्र एवं राशियों पर निर्भर है  

वैदिक युग में जब  रोगों को  समझने के लिए कोई उपकरण या यंत्र नहीं होते थे तब वैद्य ज्योतिष की सहायता से रोग के निदान की संभावना तलासते थे व रोग की पहचान करते थे। क्योकि रोग की उत्पत्ति ग्रह, नक्षत्र एवं राशियों पर निर्भर करती है। कुंडली के १२ भाव जातक के सम्पूर्ण जीवन की रूप रेखा है और ग्रह, नक्षत्र, राशि एवं भाव मानव शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करता है। रोग भी उसी अंग से संबंधित होगा जिस अंग का प्रतिनिधित्व ग्रह, नक्षत्र, राशि या भाव कर रहा होता है। तो पहले हम संक्षेप में निम्न तालिका प्रस्तुत कर रहे है और उसके निचे बिस्तृत बिबेचन करेंगे। 



ग्रह एवं ग्रह से सम्बंधित अंग और रोग 

ग्रह
ग्रह से सम्बंधित अंग और अशुभ होने पर रोग 
सूर्य
हड्डियाँ व दांई आँखें, पेट, हृदय, त्वचा, सिर तथा व्यक्ति का शारीरिक गठन  -  सिर में दर्द, आंखों का रोग तथा टाइफाइड, मस्तिष्क रोग, कोढ़। 
चन्द्रमा
मन, खूनतरल पदार्थ, ह्रदय, फेफड़े, बांई आँख, छाती, दिमाग,भोजन नली, आंतो, गुरदे व लसीका वाहिनी - खांसी, नजला, जुकाम, गर्भाशय के रोग, नींद कम आने की बीमारी, बुद्धि मंद, दमा, अतिसार, खून की कमी, जल से होने वाले रोग, बहुमूत्र, उल्टी, महिलाओ में माहवारी की गड़बड़,अपेन्डिक्स, स्तनीय ग्रंथियों के रोग, कफ तथा सर्दी से जुड़े रोग, अंडवृद्धि। 
मंगल
रक्त, मज्जा, ऊर्जा, गर्दन, रगें, गुप्तांग, गर्दन, लाल रक्त कोशिकाएँ, गुदा, स्त्री अंग तथा शारीरिक शक्ति, सिर के रोग, विषाक्तता, चोट लगना व घाव होना, आँखों का दुखना, कोढ़, खुजली, रक्तचाप, ऊर्जाशक्ति का ह्रास, स्त्री अंगों के रोग, हड्डी का चटक जाना, फोडे़-फुंसी, कैंसर, टयूमर, बवासीर, माहवारी बिगड़ना, छाले होना, आमातिसार, गुदा के रोग, चेचक, भगंदर तथा हर्णिया आदि रोग।
बुध
त्वचानसें, छाती, स्नायु तंत्र, नाभि, नाक, गाल ब्लैडर, फेफड़े, जीभ, बाजु, चेहरा, बाल - छाती व स्नायु से जुड़े रोग, मिर्गी, नाक व गाल ब्लैडर के रोग, टायफाईड, पागलपन, लकवा, दौरे पड़ना, अल्सर, कोलेरा, चक्कर आना आदि रोग, हृदय रोग, बुद्धि से संबंधित परेशानी, त्वचा रोग
गुरु
वसा, दांत, जांघे, चर्बी, मस्तिष्क, जिगर, गुरदे, फेफड़े, कान, जीभ, स्मरणशक्ति, स्पलीन  - बुद्धि से संबंधित परेशानी, दांतों से सम्बंधित रोग, कानों के रोग, बहुमूत्र, जीभ लड़खड़ाना, स्मरणशक्ति कमजोर हो जाना, पेनक्रियाज से जुड़े रोग, स्पलीन व जलोदर के रोग, पीलिया, टयूमर, मूत्र में सफेद पदार्थ का आना, रक्त विषाक्त होना, अजीर्ण व अपच होना, फोड़ा फुंसी। डायबिटिज। 
शुक्र
शुक्राणुप्रजनन क्षमता, चेहरा, आंखों की रोशनी, गुप्तांग, मूत्र, वीर्य, शरीर की चमक व आभा, गला, शरीर व ग्रंथियों में जल होना, ठोढ़ी, किडनी - समस्त यौन रोग, त्वचा रोग, किडनी से संबंधित रोग, आँखों की रोशनी का कमजोर होना, यौन रोग, गले की बीमारियाँ, शरीर की चमक कम होना, नपुंसकता, बुखार व ग्रंथियों में रोग होना, सुजाक रोग, उपदंश, गठिया, रक्त की कमी होना आदि रोग
शनि
स्नायु, टांगे, जोड़ो की हड्डियाँ, मांस पेशियाँ, अंग, दांत, त्वचा व बाल, कान, घुटने  - पेट के विकार, शारीरिक कमजोरी, मांस पेशियों का कमजोर होना, पेटदर्द, अंगों का घायल होना, त्वचा व पाँवों के रोग, जोड़ो का दर्द, अंधापन, बाल रुखे होना, मानसिक चिन्ताएँ होना, लकवा मार जाना, बहरापन
राहु
पांव, स्नायु प्रणाली, पेट के विकार,  सांस लेना, गरदन, फेफडो की परेशानियाँ, पाँवो से जुड़े रोग, अल्सर, कोढ़, सांस लेने में तकलीफ, फोड़ा फुंसी, मोतियाबिन्द, हिचकी, हकलाना, स्पलीन का बढ़ना, विषाक्तता, दर्द होना, अण्डवृद्धि, कैंसर।
केतु
गैसवायु, पेट के विकार, उदर, पंजे, फेफड़ो से संबंधित बीमारियाँ, बुखार, आँतों में कीड़े , वाणी दोष, कानों में दोष, आँखों का दर्द, पेट दर्द, फोड़े, शारीरिक कमजोरी, मस्तिष्क के रोग, वहम होना, न्यून रक्तचाप, केतु के कारण कुछ रोग ऎसे भी होते हैं जिनके कारणों का पता कभी नहीं चल पाता है। 


राशि एवं राशि से सम्बंधित अंग व रोग 
राशि
राशि से सम्बंधित अंग और रोग 
मेष
सिर, सिर से संबंधित रोग जैसे सिरदर्द, लकवा, मिर्गी, अनिद्राव दुर्घटना। 
बृषभ
चेहरा, थॉयराइड, टॉन्सिल, पायरिया, लकवा, जीभ एवं हड्डियों के रोग। 
मिथुन
कंधेगर्दन और छाती का ऊपरी भाग, सिरदर्द व रक्तचाप, पाचन तंत्र, जीभ और श्वास संबंधी रोग, नर्वस सिस्टम में परेशानी, सांस कष्ट व घबराहट।
कर्क
दिलफेफड़े, छाती, स्तन और पेट, हृदय, फेफड़ों, स्तन और रक्त संबंधी समस्या। 
सिंह
पेटकलेजा, दिल की परेशानी, मानसिक रोग, रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी
कन्या
आंतें (बड़ी एवं छोटी), हड्डी, मांसपेशियों, फेफड़ो, पाचन तंत्र और आंत से संबंधित बीमारि, कब्ज। 
तुला
कमरकुल्हापेट का निचला भाग, अस्थमा, एलर्जी, फ्लू।
बृश्चिक
गुप्त अंगगुदा, अनिद्रा, प्रजनन, मूत्र, रक्त संबंधी रोगों।
धनु
जंघा, कूल्हों, जांघों और लिवर से संबंधित परेशानी।
मकर
घुटने, हृदय रोग, जोड़ों, घुटनों या पैरों की हड्डी टूटने या गंभीर चोट की समस्या। 
कुम्भ 
टांगें (पिंडलियां), श्वास, टखने, पैर, कान और नर्वस सिस्टम संबंधी रोग। 
मीन
पैर, अस्थमा, एलर्जी या फ्लू, पैरों और लसीका तंत्र से संबंधित परेशानी, आंख संबंधी रोगों।


भाव एवं भाव से सम्बंधित अंग और रोग
भाव
भाव से सम्बंधित अंग और रोग
प्रथम भाव
सिरदिमागबालचमड़ीशारीरिक कार्य क्षमतासाधारण स्वास्थ्य, सिर दर्द, मानसिक रोग, नजला तथा दिमागी कमजोरी
द्वितीय भाव
चेहरादायीं आंखदांतजिह्वानाकआवाजनाखूनदिमागी स्थिति। नेत्र रोग, कानों के रोग, मुँह के रोग, नासा रोग, दाँतों के रोग, गले की खराबी
तृतीय भाव
कानगलाकंठकंधेश्वांस नलीभोजन नलीस्वप्नगण्डमाला, श्वास, खाँसी, दमा, फेफड़े के रोग, दिमागी अस्थिरताशारीरिक विकास।
चतुर्थ भाव
छातीदिलफेफड़ेरक्त चापस्त्रियों के स्तन, मानसिक विकारों अथवा पागलपन
पंचम भाव
पेट का ऊपरी भागकलेजापित्ताशयजीवन शक्तिआंतेंबुद्धिसोचशुक्राणुगर्भ, मन्दाग्नि, अरुचि, पित्त रोग, जिगर, तिल्ली तथा गुर्दे के रोगों
षष्टम भाव
उदरबड़ी आंतगुर्देसाधारण रोगमूत्रकफबलगमदमाचेचकआंखों का दुखना, अपेन्डिक्स, आँतों की बीमारी, हर्निया
सप्तम भाव
गर्भाशयअंडाशय और अंडग्रंथिशुक्राणुप्रोस्टेट ग्रंथि।
अस्टम भाव
बाहरी जननेंद्रियअंग-भंगलंबी बीमारीदुर्घटनालिंगयोनिआयु, वीर्य-विकार, अर्श, भगंदर, उपदंश, संसर्गजन्य रोग, वृषण रोग तथा मूत्रकृच्छ 
नवम भाव
कुल्हेजांघेंधमनियांआहारपोषण, स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी रोग, यकृत दोष, रक्त विकार, वायु विकार, कूल्हे का दर्द तथा मज्जा रोग
दशम भाव
घुटनेघुटनों के रोगजोड़चपलीचर्म रोग, शरीर के सभी जोड़ एवं आर्थराइटिस।
एकादश भाव
टांगेंपिंडलियांबायां कान, चोट चपेट, रोग से छुटकारा।
द्वादश भाव
पांवबायीं आंखअनिद्रादिमागी संतुलनअपंगतामृत्युशारीरिक सुख-दुख, एलर्जी, कमजोरी, नेत्र विकार, पोलियो, शरीर में रोगों के प्रति प्रतिरोध की क्षमता की कमी


नक्षत्र एवं नक्षत्र से सम्बंधित सरीर के अंग
नक्षत्र
सरीर के अंग
नक्षत्र
सरीर के अंग
नक्षत्र
सरीर के अंग
अश्विनी
घुटने
भरणी
सिर
कृत्तिका
आंखें
रोहिणी
टांगंे
मृगशिरा
आंखें
आद्र्रा
बाल
पुनर्वसु
उंगलियां
पुष्य
मुख
अश्लेषा
नाखून
मघा
नाक
पूफाल्गुनी
गुप्त अंग
फाल्गुनी
गुदालिंगगर्भाशय
हस्त
हाथ
चित्रा
माथा
स्वाति
दांत
विशाखा
बाजू
अनुराधा
दिल
ज्येष्ठा
जिह्वा
मूल
पैर
पू.आषाढ़ा
जांघ एवं कूल्हे
.आषाढा़
जंघाएं एवं कूल्हे
श्रवण
कान
धनिष्ठा
कमर
शतभिषा
ठुड्डीरीढ़ की हड्डी
पूभाद्रपद
फेफड़ेछाती
भाद्रपद
छाती की अस्थियां
रेवती
बगलें


ग्रह और ग्रह से सम्बंधित विकार 


आयुर्वेद का मूल आधार तीन विकार - वात, पित्त और कफ होता है । जब इन तीन विकारों में असंतुलन आ जाता है तब मानव शरीर में रोगी होता है। वैद्य, हकीम नाड़ी देखकर इन तीन विकारों के अनुपात का अध्ययन कर रोग का उपचार करते हैं। ज्योतिष के अनुसार इन तीनों विकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रह इस प्रकार हैं


ग्रह
ग्रह से सम्बंधित विकार
सूर्य
पित्त
चन्द्रमा
कफवात
मंगल
पित्त
बुध
तीनों विकार
गुरु
कफ
शुक्र
वात और कफ
शनि
वात
राहु
वात और कफ
केतु
वात और कफ


जन्मकुंडली में जो ग्रह कमजोर होगा उस ग्रह से संबंधित विकार उत्पन्न होगा। रोग का कारण विकार है, इसलिए विकार से संबंधित ग्रह का उपचार किया जाता है और रोग ठीक होजाता है। जन्मकुंडली का षष्ठम भाव रोग भाव होता है। इसलिए षष्ठेश को रोगेश भी कहते हैं। षष्ठ भाव पेट, आंतें (बड़ी-छोटी) और गुर्दे आदि  सम्बंधित है।इसलिए षष्ठम भाव और षष्ठेश को रोग का कारक माना जाता है और प्रथम भाव जातक के पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है तो दोनों को देखा जाता है।इसलिए लग्न व लग्नेश और षष्ठम व षष्ठेश की स्थितियों को भली भांति जानना चाहिए, लग्न क्या है, इसमें क्या राशि है, नक्षत्र है और वह किस अंग और रोग का प्रतिनिधित्व करता है। षष्ठ भाव में क्या राशि है, नक्षत्र है और यह किस अंग और रोग का प्रतिनिधित्व करते हैं इसी तरह इनके स्वामी ग्रहों की स्थिति अर्थात किस भाव में किस राशि व नक्षत्र में है यह पूर्ण जानकारी आपको जातक के रोग का विश्लेषण करने में सहयोग देगी। रोग की अवधि: जन्मकुंडली में ग्रहों की पूर्ण स्थिति की जानकारी के बाद दशा-अंतर्दशा और गोचर का विचार करने से रोग के समय की जानकारी मिल जाती है।


कुंडली के भाव, राशि, नक्षत्र व ग्रह की दृष्टि द्वारा उत्पन्न होनेवाले रोग - बिस्तृत बिबेचना 

जन्मकुण्डली में छठा भाव बीमारी, अष्टम भाव मृत्यु और उसके कारण व द्वादश भाव बीमारी के उपचारार्थ होनेवाले व्यय को दर्शाते है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग देते है। इन बीमारियों का कुण्डली से अध्ययन करके निम्न प्रकार से पूर्वानुमान लगा सकते है। 

रक्तचाप (ब्लड प्रेशर)- जब कुण्डली में शनि और मंगल की युति हों अथवा एक-दूसरे की परस्पर दृष्टि हो तथा छठे, आठवें और बारहवें भाव में चन्द्रमा पर पापग्रहों की दृष्ट रक्तचाप के योग देता है।जब चन्द्रमा के पीड़ित हो या कुंडली में सूर्य, शनि, चन्द्र, राहु व मंगल की कर्क राशि में युति हो।  जब राहु व केतु चन्द्रमा के साथ योग बनाते हों या मिथुन राशि में पाप ग्रहों की उपस्थिति हो तो भी यह रोग होता है। 

तपेदिक (यानि टी बी, यक्ष्मा) और रत्न चिकित्सा:-  
जब मिथुन राशि में चन्द्रमा, शनि, अथवा बृहस्पति होता है या कुम्भ राशि में मंगल और केतु पीड़ित होता है तो तपेदिक रोग की संभावना बनती है।

ह्रदय रोग- जन्मकुण्डली के चतुर्थ, पंचम और छठे भावों में पापग्रह स्थित हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि नहीं हो तो ह्वदय शूल की शिकायत होती है। कुम्भ राशि स्थित सूर्य पंचम भाव में और छठे भाव में अथवा इन भावों में केतु स्थित हो और चन्द्रमा पर पापग्रहों की दृष्टि हो तो ह्वदय संबंधी रोग होते हैं।

मधुमेह (डायबिटीज)- जन्मकुण्डली के अनुसार यह रोग चन्द्रमा के पापग्रहों के साथ युति होने पर, शुक्र ग्रह की गुरू के साथ या सूर्य के साथ युति होने पर अथवा शुक्र ग्रह पापग्रहों से प्रभावित होने पर होता है।जब कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो या उससे अधिक हो। जब लग्नपति के साथ बृहस्पति छठे भाव में हो तथा तुला राशि में पाप ग्रहों की संख्या दो अथवा उससे अधिक हो। जब अष्टमेश और षष्ठेश कुण्डली में एक दूसरे के घर में स्थित हों तब भी इस रोग का भय रहता है।  

दन्त रोग- दांतों का स्वामी बृहस्पति होता है.कुण्डली में बृहस्पति के पीड़ित होने पर दांतों में तकलीफ होता है।बृहस्पति जब नीच राशि में या द्वितीय, नवम एवं द्वादश भाव में होता है तब भी दांत सम्बन्धी तकलीफ होता है। 

पाईल्स (बबासीर)- सप्तम स्थान में स्थित मंगल लग्न में स्थित शनि से दृष्ट हो तो पाईल्स होती है। पंचम,सप्तम या अष्टम भाव में पापग्रह स्थित हों तो कब्ज और पाईल्स की शिकायत होती है।जब सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति। जब वृश्चिक राशि में पाप ग्रह स्थित हों तो बवासीर होने की संभवना होती है। अष्टम भाव में शनि व राहु हो अथवा द्वादश भाव में चन्द्र और सूर्य का योग हो तो इस रोग की पीड़ा का सामना करना होता है।

माईग्रेन- जब कुण्डली में शनि -चन्द्र की युति हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो तो माईग्रेन की शिकायत होती है। पंचम स्थान में शत्रु राशि के ग्रह स्थित हों तो माईग्रेन की शिकायत होती है।

भूलने की बीमारी- जब लग्न और लग्नेश पाप पीड़ित होते हैं तो इस प्रकार की स्थिति होती है। सूर्य और बुध जब मेष राशि में स्थित हों और शुक्र अथवा शनि उसे पीड़ित करते हैं तो स्मृति दोष की संभावना बनती है। जब शनि की महादशा चलती है या साढे साती के समय भी भूलने की बीमारी की संभावना प्रबल रहती है I
सफेद दाग़- सफेद दाग़ त्वचा सम्बन्धी रोग है। इस रोग में त्वचा पर सफेद रंग के चकत्ते उभर आते हैं। यह रोग तब होता है जब वृष, राशि में चन्द्र, मंगल एवं शनि का योग बनता है। जब चन्द्रमा और शुक्र कर्क, मकर, कुम्भ और मीन राशि में युति बनाते हैं तो व्यक्ति इस रोग से पीड़ित होने की संभावना रहती है। बुध के शत्रु राशि में होने पर अथवा वक्री होने पर भी इस रोग की संभावना बनती है I
गंजापन- जब कुण्डली के लग्न स्थान में तुला अथवा मेष राशि में स्थित होकर सूर्य शनि पर दृष्टि डालता है तो गंजेपन की समस्या अधिक रहती है I
अस्थमा (श्वांस रोग)- जब कुण्डली में बुध मंगल के साथ स्थित हो या मंगल से दृष्ट हो। जब चन्द्रमा शनि के साथ बहुत कम दूरी पर स्थित हो अथवा अष्टम स्थान में वृश्चिक-मेष राशि का या नवांश का राहु स्थित हो तो व्यक्ति में एलर्जी के कारण अस्थमा की शिकायत होती है।

स्त्री रोग- महिलाओं की जन्मकुण्डली में चन्द्रमा जब भी पापग्रहों के साथ स्थित होगा तो मानसिक अशांति के साथ मासिक धर्म की अनियमितता पैदा करता है। जब अष्टम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि का राहु स्थित हों और नवांश स्थिति भी उनकी अच्छी न हो तो रक्त स्त्राव अधिक होता है।

दुर्घटना योग- जब अष्टम भाव में मंगल, राहु, केतु य शनि शत्रु राशि के स्थित हों और नवांश में भी उनकी स्थिति अच्छी नहीं हो और किसी शुभग्रहों की दृष्टि भी उन पर नहीं हो तो दुर्घटनाएं गम्भीर होती है।

पैरों में रोग- पैरों का स्वामी शनि होता है। पैरों से सम्बन्धित पीड़ा का कारण शनि का पीड़ित या पाप प्रभाव में होना है। छठे भाव में सूर्य अथवा शनि होने पर पैरों में कष्ट का सामना करना होता है। जब मकर, कुम्भ अथवा मीन राशि में राहु, केतु, सूर्य या शनि होता है तब पैरों में चर्म रोग होने की संभावना बनती है।
त्वचा रोग- शुक्र त्वचा का स्वामी ग्रह है। बृहस्पति अथवा मंगल से पीड़ित होने पर शुक्र त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, एक्जीमा देता है। कुण्डली में सूर्य और मंगल का योग होने पर भी त्वचा सम्बन्धी रोग की सम्भावना रहती है। मंगल मंद होने पर भी इस रोग की पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है।

मिरगी रोग- इस रोग के लिए चंद्र तथा बुध मुख्य करक ग्रह मानेगए है। जब  कुंडली में राहु व चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हों या शनि व चंद्र की युति मंगल से दृष्ट हो। जब शनि व मंगल कुंडली में छठे या आठवें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को मिरगी रोग का सामना करना पड़ सकता है। 
अन्य रोग- अष्टम भाव पीठ दर्द और कमर दर्द का कारण भी दर्शाता है। छठे भाव और अष्टम भाव में स्थित पापग्रह नेत्र की बीमारियां दर्शाता है। द्वितीय और द्वादश भाव में स्थित ग्रह भी अनेक प्रकार के रोगों का संकेत देते हैं। अत: सम्पूर्ण रूप से रोग का विचार करते समय जन्मकुण्डली में छठे, आठवें एवं द्वादश भाव के साथ-साथ द्वितीय भाव की विवेचना करना चाहिये। इसके अतिरिक्त यदि व्यक्ति रोगी हो और जिस अंग पर रोग हो तो कुण्डली में उसी अंग का प्रतिनिधित्व करने वाले भाव का अध्ययन अच्छी तरह करना चाहिये।

कुण्डली में मानसिक रोग के कारण

कुंडली में ऐसे अनेक योग होते है जो मानसिक बीमारी के कारण होते हैं। 

मानसिक बीमारी में चंद्रमा, बुध, चतुर्थ भाव व पंचम भाव को देखा जाता है। क्योंकि चंद्रमा मन है तो बुध बुद्धि का करक है उसीप्रकार चतुर्थ भाव मन है तो पंचम भाव से बुद्धि देखी जाती है। जब व्यक्ति भावुकता में बहकर मानसिक संतुलन खोता है तब उसमें पंचम भाव व चंद्रमा की भूमिका अहम मानी जाती है। शनि व चंद्रमा की युति भी मानसिक शांति के लिए अशुभ होती है।  मानसिक परेशानी में चंद्रमा अवश्य पीड़ित रहता है। 
1- चंद्रमा मन है और राहु भ्रम। यदि जन्म कुंडली में चंद्रमा और  राहु साथ है तब व्यक्ति को मानसिक बीमारी होने की संभावना बनती है। 
2- जब कुंडली में बुध, केतु और चतुर्थ भाव का संबंध बन रहा हो और ये तीनों अत्यधिक पीड़ित हों तो व्यक्ति में अत्यधिक जिदपन हो सकती है और वह सेजोफ्रेनिया का शिकार हो सकता है। 
3- जब कुंडली में गुरु और मंगल में से एक लग्न में स्थित हो और दूसरा  सप्तम भाव में स्थित हो तो मानसिक आघात की संभावना रहती है।
4- जब कुंडली में शनि लग्न में और मंगल पंचम, सप्तम, या नवम भाव में स्थित हो तोभी मानसिक रोग होने की संभावना रहती है। 
5- जब कुंडली में शनि व चंद्र की युति होती है तो व्यक्ति को मानसिक तनाव होता है। 
6- जब कुंडली में शनि लग्न में, सूर्य 12वें भाव में, तथा मंगल और चंद्रमा त्रिकोण भाव में स्थित हो तो मानसिक रोग होने की संभावना बनती है। 
7- राहु व चंद्रमा लग्न में स्थित हो और अशुभ ग्रह त्रिकोण में स्थित हों तब भी मानसिक रोग की संभावना बनती है। 
8- मंगल चतुर्थ भाव में शनि से दृष्ट हो या शनि चतुर्थ भाव में राहु/केतु अक्ष पर स्थित हो तब भी मानसिक रोग की संभावना बनती है। 
9- जब कुंडली में शनि व मंगल की युति छठे या आठवें भाव में हो तो मानसिक रोग की संभावना बनती है।
10- जब कुंडली में बुध पाप ग्रह के साथ तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो भी मानसिक रोग की संभावना बनती है। 
11- जब चंद्रमा की युति केतु या शनि के साथ हो रही हो तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है। 
12- जब कुंडली में शनि और मंगल दोनो ही चंद्रमा या बुध से केन्द्र में स्थित हों तब मानसिक रोग होने की संभावना बनती है। 

मानसिक रुप से कमजोर बच्चे अथवा मंदबुद्धि बच्चे
1- शनि पंचम से लग्नेश को देख रहा हो तब व्यक्ति जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.
2- जन्म के समय बच्चे की कुण्डली में शनि व राहु पंचम भाव में स्थित हो, बुध बारहवें भाव में स्थित हो और पंचमेश पीड़ित अवस्था में हो तब बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.
3- पंचम भाव, पंचमेश, चंद्रमा व बुध सभी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तब भी बच्चा जन्म से ही मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.
4- जन्म के समय चंद्रमा लग्न में स्थित हो और शनि व मंगल से दृष्ट हो तब भी व्यक्ति मानसिक रुप से कमजोर हो सकता है.
5- पंचम भाव का राहु भी व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट करने का काम करता है, बुद्धि अच्छी नहीं रहती है