Tuesday 3 March 2015

कुंडली के बारह (१२) भाव में मंगल का प्रभाव


कुंडली के बारह भाव में मंगल का प्रभाव
मंगल पाप ग्रह माना जाता है।यह दक्षिण दिशा का स्वामी है। मंगल का तत्व अग्नि है मंगल जातक में धैर्य, पराक्रम एवं साहस का द्योतक है। छोटे भाई की स्थिति भी पत्रिका में मंगल से देखी जाती हैं। मंगल शत्रु, अभिमा, विजय, क्रोध, बाहुबल और अस्त्र शस्त्र का कारक है। मंगल धैर्य, कीर्ति, नेतृत्व, आपरेशन, कृषि, उत्साह, दण्ड नीति, गंभीरता एवं स्वतंत्रता का भी द्योतक है। भूमि पुत्र होने की वजह से मंगल से भूमि, जमीन, जायदाद इत्यादि का विचार भी करते हैं।

प्रथम भाव
जातक झूठा, क्रोधी, भावना-शून्य, महत्वाकांक्षी, सुंदर स्वरूप वाला, दृढ़ शरीर वाला, आक्रामक स्वभाववाला,  दीर्घायु  और साहसी होता है। उसे गुस्सा बहुत जल्दी व बहुत ज्यादा आता है। उसका ताम्र वर्ण,  चेहरे पर दाग तथा सिर और शरीर में चोट के निशान होता है।जातक को उदर विकार, रक्त विकार तथा बचपन में दांत निकलते समय कष्ट होता है।जातक अच्छा शल्य-चिकित्सक (सर्जन) या भूगर्भ वैज्ञानिक हो सकता है। जातक भूमि संबंधित कार्यों में विशेष सफलता प्राप्त करता है। जातक में विशेष नेतृत्व क्षमता होती है तथा वह सेना व पुलिस, में अधिकारी बन सकता है। जातक को अपने कार्य में हस्तक्षेप पसंद नहीं होता तथाआवेश में आने पर वह असंतुलित व्यवहार करता है। जातक स्वयं को बढ़ा-चढ़ा कर बताता व परिश्रम से भाग्य का निर्मण करता है। 

पूर्ण दृष्टिः प्रथम भाव में स्थित मंगल की पूर्ण दृष्टि सप्तम स्थान पर पड़ती है इससे जातक की उसकी पत्नी से अनबन रहती है। मंगल की चतुर्थ दृष्टि चतुर्थ भाव पर होती हैं जो जातक की माता के लिए कष्टकारी है। जातक मातृभक्त होता है। मंगल की अष्टम दृष्टि मृत्यु भाव पर होती है जिससे जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ हो सकती है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल स्व, मित्र या उच्च राशि का  होने पर जातक साधारण परिस्थियों से उठकर उच्च पद प्राप्त करता है। जातक प्रायः स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट होता है। उच्च अधिकारीयों का सहयोग मिलता है। मंगल नीच या शत्रु राशि का होने से जातक क्रूर कर्म करने की और प्रवृर्त होता है, वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं होता तथा मुकदमेबाजी से परेशान होता है।

द्वितीय भाव
जातक  उग्र स्वभाव का, असभ्य, निर्बुद्धि, धनहीन, फिजूलखर्ची,अपव्ययी, कटुवाणी बोलनेवाला तथा प्रबल तर्क शक्तिवाला होता है। विवादों में लाभ प्राप्त करता है बिना थके लगातार काम करता है। द्वितीय भाव में स्थित मंगल से जातक को विष व शस्त्र का भय रहता है।

पूर्ण दृष्टिः द्वितीय भाव में स्थित मंगल की सप्तम दृष्टि अष्टम स्थान पर पड़ने से जातक रोगी व दुःखी रहता है। द्वितीयस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि पंचम भाव पर पड़ने से जातक को संतान की चिंता रहती है। द्वितीयस्थ मंगल की अष्टम दृष्टि नवम भाव पर पड़ने से जातक के भाग्य में प्रगति होती है।

शत्रु/मित्र राशिः मंगल उच्च, स्व या मित्र राशि में जातक को पराक्रमी एवं परदेशवासी बनता हैं।शत्रु व नीच राशि में होने पर जातक निर्बुध्दी, धनहीन, क्रोधी, सद्दैव चिंतित, चोरी व आर्थिक हानि का भय, कटु बोलने वाला होता हैं।

तृतीय भाव
जातक साहसी, धैर्यवान, सर्वगुणसम्पन्न, बलवान, शूरवीर और उदार होता है।जातक अपने पुरूषार्थ व पराक्रम से सभी प्रकार के सुख तथा धन अर्जित करता है। जातक में शारीरिक स्फूर्ति तथा खाने की भूख अधिक होती है। जातक शस्त्र कला में विशेष रूचि रखता है।

पूर्ण दृष्टिः तृतीयस्थ मंगल की सप्तम दृष्टि नवें स्थान पर पड़ती है। जिसके कारण जातक धनी, पराक्रमी और बुद्धिमान होता है। तृतीयस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि षष्टम भाव पर पड़ने से शत्रु परास्त होते है। मंगल की अष्टम दृष्टि दशम भाव पर पड़ने से राज्यधिकार व उच्च स्थान की प्राप्ति होती है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल मित्र, स्व या उच्च राशि में होने से जातक अपने पराक्रम से सब कुछ प्राप्त करते हुए भी सदैव अंसतुष्ट रहता है। शत्रु व नीच राशि में जातक को भाइयों से सुख नहीं मिलता, शक्ति तथा बुद्धि का उपयोग नहीं करता या गलत दिशा में करता है तथा विद्रोही स्वभाव का होता है।

चतुर्थ भाव
जातक कठोर हृदयवाला, सुखी, सन्ततिवान, अभिमानी, भ्रमणशील व प्रवासी होता है। पिता से वैचारिक मतभेद, मातृ भक्त किंतु मातृ सुख का अभाव होता है। जातक को भूमि एवं वाहन का सुख भी मुश्किल से प्राप्त होता हैं। घरेलू झगड़े होने की संभावना रहती है। जातक तकनिकी क्षेत्र में जाता है

पूर्ण दृष्टिः सप्तम दृष्टि दशम भाव पर पड़ने से जातक राजसेवक व मेहनती होता है। चतुर्थस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि सप्तम भाव परपड़ने से जातक की पत्नी से अनबन रहती है। चतुर्थस्थ मंगल की अष्टम दृष्टि एकादश भाव पर पड़ने से भूमि संबंधी कार्यो से आय होती है।

मित्र/सत्रु राशिः मंगल स्व, मित्र या उच्च राशि में होने पर जातक को जमीन, मकान वाहन आदि के सुख प्राप्त होते हैं। यह राज योग कारक होता है। जातक स्वनिर्मित मकान में रहता है। शत्रु व नीच राशि में होने से जातक के घर या व्यवसाय में सदैव अग्नि तथा चोरी का भय रहता है।माता को अरिष्ट होता है। जातक जन्म स्थान से दूर तथा गरीब रहता है। जातक को जमीन, वाहन आदि के सुख प्राप्त नहीं होते।

पंचम भाव
जातक उग्र स्वभाव का, क्रोधी, धैर्यहीन,कपटी, जिद्दी, अपनी मनमानी करनेवाला, ढृढ़ निश्चय शक्तिवाला, परिश्रमी तथा बुद्धिमान होता है। मंगल जातक को विशेष जीवन शक्ति तथा इंजीनियरिंग, पुलिस, कानून इत्यादि से संबंधित शिक्षा देता है। स्त्री की जन्म पत्रिका में पंचमेश मंगल संतान के लिए कष्टकर तथा पहली संतान का गर्भपात होने की संभावना होती है।

पूर्ण दृष्टिः पंचमस्थ मंगल की सप्तम दृष्टि एकादश भाव पर पड़ने से जातक धनी होता है। पंचमस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ने से जातक को पेट संबंधी बीमारियाँ होती है। पंचमस्थ मंगल की अष्टम दृष्टि द्वादश भाव पर पड़ने से जातक चिंताग्रस्त रहता है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल मित्र, उच्च या स्वराशि में के स्थित होने से जातक धनी परंतु संतान सुख में कमी, प्रायः शारीरिक रूप से कमजोर संतान तथा कुटुंब से तनाव होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल जातक को अत्यंत क्रोधी, अंर्तमुखी, मानसिक रूप से कष्ट, शिक्षा में बाधा तथा संतान की चिंता होती है।

षष्टम भाव
जातक यशस्वी, परिश्रमी, चतुर बुद्धि, बलवान, उत्साही, कुशल कार्यकर्ता, जुझारू, प्रबल शत्रुहंता होता है। जातक प्रत्येक कार्य को करने के लिए अधीर हो जाता है।जातक को गठिया, वात, हृदय रोग, छोटी बड़ी दुर्घटना की संभावना होती है तथा वह स्वास्थ्य के प्रति लापारवाह होता है। जातक में प्रचंड जीवन शक्ति होती है जिसके प्रभाव से जातक विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नही हारता और अपने जुझारूपन से लक्ष्य को प्राप्त करता है। छठे भाव में मंगल प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है।

पूर्ण दृष्टिः मंगल की सप्तम  दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ने से जातक उग्र प्रकृति का तथा अनावश्यक व्यय करता है। छठे मंगल की चतुर्थ  दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक अभिमानी एवं धर्म के प्रति रूचि कम होती है। छठे स्थान पर स्थित मंगल की अष्टम दृष्टि लग्न पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का एवं क्रोधी होता है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल के उच्च, मित्र या स्व राशि में होने से जातक शत्रुहन्ता, पराक्रमी, परिश्रमी और प्रायः पुलिस या सेना में सफल अधिकारी होता है।भूमि, भवन और वाहन के कार्यो में सफल व्यवसायी होता है। शत्रु व नीच राशि में मंगल जातक को अस्वस्थ,निर्बल, कामी, खर्चीला तथा कर्जदार बनता है।

सप्तम भाव
जातक बुद्धिमान, प्रभावशाली, साहसी,परिश्रमी, कठोर वाणी, क्रोधी, धूर्त, ईर्ष्यालु, वात रोगी होता है। जातक आवेश में अपना धैर्य खो बैठता है। जातक को मध्य आयु मं बहुत अधिक संघर्ष और परिश्रम करना पड़ता है।जातक अपने धन का नाश करता है। पत्नी के सुख में निश्चित रूप से न्यूनता होती है। प्रायः जातक की पत्नी तेज स्वभाव की होती है जिससे वैवाहिक जीवन संतुष्टिकारक नही होता है। सप्तम भाव में स्थित मंगल से जातक के वैवाहिक सुख में न्यूनता होती है। पति अथवा पत्नी से अलगाव या किसी की मृत्यु होने की संभावना होती है।

पूर्ण दृष्टिः मंगल की सप्तम दृष्टि लग्न पर पड़ने से जातक उग्र स्वभाव का होता है। सप्तमस्थ मंगल की चतुर्थ दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक को राज्यधिकार प्राप्त होता है। सप्तमस्थ मंगल की अष्टम पूर्ण द्वितीय भाव पर पड़ती है जिससे जातक को पैतृक संपत्ति मिलने में कठिनाई होती है एवं कुटुंब से जातक के मतभेद बने रहते हैं।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल मित्र, स्व या उच्च राशि में  स्थित होने पर मंगल के कुप्रभावों में कमी आती है। वैवाहिक जीवन मध्यम परंतु जीवनसाथी सं मदभेद अवश्य होते हैं। यात्राओं से धन लाभ होता है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल जातक के लिए अत्यंत कष्टप्रद होता है। जातक का वैवाहिक जीवन दुखी होता है। पत्नी  की मृत्यु या अलगाव होने की प्रबल संभावनाएँ होती है। स्त्री की पत्रिका में सप्तम मंगल शत्रु राशि का होने पर पति वियोग की संभावना होती है।

अस्टम भाव
अष्टम भाव में स्थित मंगल को अशुभ फलदायी माना जाता है।जातक मानसिक रूप से अस्थिर, निर्णयशक्ति का अभाव, आकस्मिक दुर्घटना, असमय मृत्यु की संभावना, अनीति से धन कमाने की प्रबृत्ति, सांसारिक सुख पाने की तीव्र लालसा होती है। अष्टम मंगल के प्रभाव से जातक में अजीर्ण, रक्तचाप, वायुरोग, पेट रोग और रक्त विकार हो सकते हैं।  कभी-कभी  शल्य चिकित्सा (सर्जरी) की भी आवाश्यक होती है। जातक हठ योग में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

पूर्ण दृष्टिः अष्टम भाव में स्थित मंगल की सप्तम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ने से जातक के धन में न्यूनता, सदैव धन की चिंता, पारिवारिक सुख में न्यूनता आती है। अष्टम भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि एकादश भाव पर पड़ने से जातक को भूमि संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। अष्टम भाव स्थित मंगल  की अष्टम दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ने से जातक पराक्रमी एवं साहसी होता है।

मित्र/शत्रु राशि: मंगल मित्र, स्व या उच्च राशि में स्थित होने पर मंगल के कुप्रभावो में न्यूनता आती है। दुर्घटना में मृत्यु नही होती कई बार ईश्वरीय कृपा से जानबचती है। शत्रु राशि में प्रायः दंगे, लड़ाई वाहन दुर्घटना, आगजनी, इत्यादि से कष्ट होने की तथा अग्नि भय की संभावना होती है।

नवम भाव
जातक यशस्वी, अभिमानी, तेजस्वी, उत्साही, कठोर, शकी, विद्रोही स्वभाव, धार्मिक प्रबृत्ति में कमी,  होता है। जातक एक ही समय में कई कार्य करना चाहता है और वह अपने काम में हस्तक्षेप पसंद नही करता। जातक को वाहन, भवन, भूमि संबंधी कार्यों से विशेष लाभ होता। जातक आधुनिक दृष्टिकोण रखता है। आत्म नियंत्रण न होने के कारण वह सभी परम्पराओं को तोड़ देना चाहता है। जातक ऊँचे पद पर अधिकारी होता है। विदेश यात्रा में या प्रवास में जातक के दुर्घना के योग बनते हैं।

पूर्ण दृष्टिः नवम भाव स्थित मंगल की सप्तम दृष्टि तृतीय भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक पराक्रमी, भाग्यवान होता है किंतु उसे भाईयों के सुख में कमी होती है। नवम भाव स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि द्वादस भाव पर पड़ती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र प्रकृति का हो जाता है। जातक के व्यय अधिक होते हैं और उसे धन संग्रह में मुश्किलें आती हैं। नवम भाव स्थित मंगल की अष्टम पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ती है जो की माता के लिए कष्कारी किन्तु  जातक मातृभक्त होता है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल मित्र, उच्च या स्व राशि में हो तो जातक को कीर्ति और धन प्राप्त होता है। जातक का भाग्योदय अवश्य होता है। उसके यश, मान और प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। शत्रु राशि में स्थित मंगल अपर्कीति फैलाता है। जातक का भाई से क्लेश, व्यवसाय और लाभ में कमी या हानि होती है।

दशम भाव
जातक चपल स्वभाव का, महत्वकांक्षी, बलवान, धनवान, सुखी, विख्यात, साहसी, उत्साही, पराक्रमी, यशस्वी,अत्यंत स्वाभिमानी,उदार  होता है। पिता से वैचारिक मतभेद के कारण पितृ सुख में कमी तथा संतान के प्रति चिंता होती है। जातक अपने प्रयासों से समस्त कठिनाईयों पर विजय प्राप्त करता है। अपने कार्य के प्रति समर्पित होता है। 

पूर्ण दृष्टिः दशम भाव में स्थित मंगल की सप्तम दृष्टि चतुर्थ भाव पर पड़ने से जातक को उत्तम वाहनौं का सुख व धन की प्राप्ति होती है। मंगल की चतुर्थ दृष्टि लग्न पर होती है जिसके प्रभाव से जातक उग्र स्वभाव का होता है। अष्टम  दृष्टि षष्ट भाव पर होती है जिसके  प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है।

मित्र/शत्रु राशिः मंगल मित्र, स्व या उच्च राशि मेंअति शुभ फलदायक होता है। जातक को कम प्रयासों से ही अधिक उन्नति, कार्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। जातक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ भी बनता है। जातक को धन, मान सम्मान, भूमि वाहन इत्यादि सुखों की प्राप्ति होती है। शत्रु व नीच राशि में स्थित मंगल शुभ प्रभावों में न्यूनता लाता है। जातक को माता पिता का सुख पूर्णतः नही मिल पाता है। जातक को व्यवसाय में संघर्ष करना पड़ता है।

एकादश भाव
जातक का स्वभाव सुशील, सज्जन, साहसी, न्यायवान, धैर्यवान, ईमानदार, प्रतापी और आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है। जातक में प्रबल उत्साह होता है जिस कारण वह कठिन कार्य भी आसानी से करता है। एकादश स्थान में स्थित मंगल डाँक्टर और सर्जनों के लिए विशेष शुभ फलदायक होता है जो उन्हें उनके कार्यक्षेत्र में कार्यकुशल, यशस्वी तथा धनी बनाता है। वकील, इंजीनियर, सुनार और लोहे का व्यापार करने वाले जातकों को अधिक लाभ होता है। पुलिस व सेना की नौकरी से आय या व्यवसाय की स्थिति में भूमि संबंधी कार्यों से आयहोता है।

पूर्ण दृष्टिः एकादश से सप्तम् अर्थात् पंचम स्थान पर मंगल की दृष्टि के प्रभाव से जातक को संतान कष्ट होता है। जातक की विद्या में रूकावटें आती है। प्रायः कर्ज लेने की स्थिति बनती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि द्वितीय भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक के धन में न्यूनता आती है। एकादश भाव में स्थित मंगल की अष्टम दृष्टि षष्ठ भाव पर होती है जिसके प्रभाव से जातक शत्रुओं को परास्त करता है।

मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व या उच्च राशि का होने पर जातक में कई असाधारण गुण होते हैं। वह अत्यंत साहसी एवं उत्तम चरित्र वाला होता है। जातक की अधिकाँश इच्छाएँ पुरी हो जाती हैं। मित्रों से अच्छे संबंध होते हैं और उनसे लाभ होता है। जातक सत्यवादी होता है। शत्रु एवं नीच राशि का मंगल एकादश भाव में होने पर विपरीत प्रभाव होते हैं। जातक को मित्रों से हानि होती है। जातक की आय में रूकावट होती है।

द्वादश भाव
जातक झगड़ालू, जिद्दी, अपव्ययी, क्रोधी, चंचल, पराये धन की लालसा, नीच कर्म करने वाला होता है।  जातक बचपन से ही दूसरे बच्चों पर अपना रौब जमाता है। जातक प्रशंसा न मिलने पर जल्दी ही निराश हो जाता है। दांपत्य जीवन कष्टप्रद एवं उसकी पत्नी से अनबन रहती है। द्वादश भाव में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक को बाँयी आंख में कष्ट होता है। जातक का बचपन कष्टप्रद होता है। जातक को चोरों, हथियारों और शत्रुओं से कष्ट प्राप्त होता है। शुभ मंगल के प्रभाव में छोटी-छोटी चोटें लगती हैं पर अशुभ मंगल के प्रभाव से हड्डी टूटने के आसार ज्यादा होते हैं। जातक के अनेक गुप्त शत्रु होते हैं।

पूर्ण दृष्टिः बारहवें भाव में स्थित मंगल की सप्तम दृष्टि छठे भाव पर होने से शत्रुओं से कष्ट, धर्म-कर्म में कम आस्था, ऋणी, नेत्र संबंधी परेशानियाँ होती है। जातक का व्यय अधिक होता है। बारहवें भाव में स्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि तृतीय भाव पर होने से जातक पराक्रमी तथा भाग्यवान होता है किंतु उसे भाईयों के सुख में कमी होती है। बारहवें भाव में स्थित मंगल की अष्टम दृष्टि सप्तम भाव पर होती है जिसके प्रभाव से प्रायः जातक की उसकी पत्नी से अनबन बनी रहती है।

मित्र/शत्रु राशिः मित्र, स्व व उच्च राशि में स्थित मंगल के प्रभाव से जातक के स्वभाव के दुर्गुण कम होते हैं। जातक प्रसन्न, बलवान, धनी, भ्रमण प्रिय, यात्री तीब्र बुद्धि, एकाग्रिचित्त और सुखी होता है। शत्रु व नीच राशि का होने पर जातक अनेक प्रकार के नुकसान उठाता है। जातक की जेल जाने की संभावना होती है।

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