Saturday 11 April 2020

स्वस्तिक का अर्थ, महत्व, प्रयोग व लाभ




स्वस्तिक का अर्थ, महत्व, प्रयोग व लाभ


स्वस्तिक का अर्थ : 

१. स्वस्तिक शब्द को 'सु' एवं 'अस्ति' का मिश्रण योग माना जाता है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' का अर्थ है- होना अर्थात 'शुभ हो', 'कल्याण हो'। स्वस्तिक अर्थात शुभ मंगल कलनेवाला।



२. स्वस्तिक शब्द सु + अस + क के  मिश्रण का योग भी माना जाता है। सु का अर्थ है शुभ अस का अर्थ है अस्तित्व और क का अर्थ है करनेवाला (कर्ता) अर्थात शुभ मंगल कलनेवाला। 



क्या है स्वस्तिक : स्वस्तिक में एक-दूसरे को काटती हुई 2 सीधी रेखाएं होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएं अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती हैं। प्रथम स्वस्तिक जिसमें रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दाईं ओर मुड़ती हैं। इसे 'दक्षिणावर्त स्वस्तिक' कहते हैं। दूसरी आकृति पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बाईं ओर मुड़ती है इसे 'वामावर्त स्वस्तिक' कहते हैं।स्वस्तिक को 7 अंगुल, 9 अंगुल या 9 इंच के आकर में बनाए जाने का विधान है।


स्वस्तिक और उसके दोनों तरफ दो - दो खड़ी रेखाएं 

सनातन मान्यतानुसार स्वस्तिक भगवन गणेश का प्रतिक है तो दोनों तरफ दो - दो खड़ी रेखाएं उनकी दो पत्नी रिद्धि - सिद्धि तथा दो पुत्र शुभ और लाभ का प्रतिक है। स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है। 



स्वस्तिक का प्रादुर्भाव - ऋग्वेद की ऋचा में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतिक स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। स्वस्तिक की चार भुजाओं को चरों दिशाओं का प्रतिक माना गया है, स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्‍टि की उत्पत्ति और आड़ी रेखा सृष्‍टि के विस्तार का प्रतीक है। इसकी चार बिंदियों में गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है।स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु का नाभि कमल है। इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा है।यह लक्ष्मी, गणेश, शुभ और मंगल कार्य का प्रतिक चिन्ह है। वैदिक ऋषियों ने ऋग्वेद की रचना के पहले स्वस्तिक का आविष्कार किया और स्वस्तिक के रहस्य को सविस्तार बताया। इसके धार्मिक, ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी बताया।  

स्वस्तिक हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण चार सिद्धांत (धर्म, अर्थ काम और मोक्ष), चार वेद (ऋग्, यजु, साम और अथर्व वेद), चार मार्ग (ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति) व चार आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) का प्रतीक है।यह मानव जीवन चक्र (जन्म से बालपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा) व समय का भी प्रतीक है। स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों (नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति) व चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) का द्योतक हैं। स्वस्तिक चार दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण) तथा सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।

स्वस्तिक का आरंभिक आकार गणित के घन चिह्न के समान है अत: इसे जोड़ या मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। घन के चिह्न पर एक-एक रेखा जोड़ने पर स्वस्तिक का निर्माण होता है।

आज स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग-अलग रूप में निचे लिखे तरिके से इस्तेमाल किया जाता है।

आज से हजारों साल पहले जब दुनिया धर्म, जाती, संप्रदाय या अन्यथा में नहीं बाटी थी तब से इस मंगलकारी स्वस्तिक चिह्न का प्रयोग हो रहा है जिसका प्रमाण सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में प्राप्त हुए बिभिन्न प्रकार के अवशेषों, मुद्रा और बर्तनों पर खुदहुए स्वस्तिक के चिन्हों से प्रमाणित होता है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है।

दुनिया के अन्य देशों में स्वस्तिक: स्वस्तिक को न सिर्फ भारत,बल्कि दुनिया के अनेक देशों में स्वस्तिक को विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है। नेपाल में 'हेरंब' के नाम से पूजित होते हैं। बर्मा में इसे 'प्रियेन्ने' के नाम से जाना जाता है। मिस्र में 'एक्टन' के नाम से स्वस्तिक की पूजा होती है।

जर्मन में स्वस्तिक : एडोल्फ हिटलर के पोषक में दोनो तरफ स्वस्तिक का चिह्न हुआ करता था द्वितीय विश्‍वयुद्ध के समय एडोल्फ हिटलर के दर्जी ने पोषक पर गलती से उल्टा स्वस्तिक लगा दिया था जिससे हिटलर की मृत्यु हो गई। 

वर्ष 1935 के दौरान जर्मनी के नाज़ियों द्वारा स्वास्तिक के निशान का इस्तेमाल सफेद गोले में काले ‘क्रास’ के रूप में किया गया था जिसका अर्थ उग्रवाद या फिर स्वतंत्रता से सम्बन्धित था।

अमेरिका में स्वस्तिक : संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की 45वीं मिलिट्री इन्फैंट्री डिवीजन का चिह्न पीले रंग का स्वस्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरूड़ का चिह्न अपनाया।

अमरीकी सेना ने पहले विश्व युद्ध में इस प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया था। ब्रितानी वायु सेना के लड़ाकू विमानों पर इस चिह्न का इस्तेमाल 1939 तक होता रहा था।

मिस्र और अमेरिका में स्वस्तिक का काफी प्रचलन रहा है। इन दोनों जगहों के लोग पिरामिड को पुनर्जन्म से जोड़कर देखा करते थे। प्राचीन मिस्र में ओसिरिस को पुनर्जन्म का देवता माना जाता था और हमेशा उसे 4 हाथ वाले तारे के रूप में बताने के साथ ही पिरामिड को सूली लिखकर दर्शाते थे।

स्वस्तिक को पिरामिड का प्रतीक भी माना जाता है। आप एक कागज का स्वस्तिक बनाइए और फिर उसकी चारों भुजाओं को नीचे की ओर मोड़कर बीच से पकड़िए। ऐसा करने पर यह पिरामिड के आकार का दिखाई देगा।

प्राचीनकाल में यूरोप की सेल्ट नामक एक सभ्यता थी, जो स्वस्तिक को सूर्य व यूरोप के चारों मौसमों का प्रतीक मानती थी।

मेसोपोटेमिया (आज का इराक) में अस्त्र-शस्त्र पर स्वस्तिक चिह्न बनाया जाता था। 

बुल्गारिया के व्रात्स नगर के संग्रहालय में 7,000 वर्ष पुरानी कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी हुई हैं जिस पर स्वस्तिक का चिह्न बना हुआ है। व्रास्ता शहर के निकट अल्तीमीर नामक गांव के एक धार्मिक यज्ञ कुंड के खुदाई के समय ये कलाकृतियां मिली थीं।

प्राचीन ग्रीस के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। पश्चिमी यूरोप में बाल्टिक से बाल्कन तक इसका इस्तेमाल देखा गया है। यूरोप के पूर्वी भाग में बसे यूक्रेन में एक नेशनल म्यूज़ियम स्थित है। इस म्यूज़ियम में कई तरह के स्वास्तिक चिह्न देखे जा सकते हैं, जो 15 हज़ार साल तक पुराने हैं।

प्राचीन फारस (ईरान) में स्वास्तिक की पूजा का चलन सूर्योपासना से जोड़ा गया था, जो एक काबिल-ए-गौर तथ्य है।


जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों और उनके चिह्न में स्वस्तिक भी शामिल है। तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का शुभ चिह्न स्वस्तिक है। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी स्वस्तिक अंकित मिलता है। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।

बौद्ध मान्यता के अनुसार स्वस्तिक वनस्पति संपदा की उत्पत्ति का कारण है। बौद्ध धर्म में स्वस्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक भी माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिह्नों को दिखाता है। यही नहीं, स्वस्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है। 

यहूदी और ईसाई धर्म में भी स्वस्तिक का महत्व है। ईसाई धर्म में स्वस्तिक क्रॉस के रूप में चिह्नित है। स्वस्तिक को ईसाई धर्म में कुछ लोग पुनर्जन्म का भी प्रतीक मानते हैं।

हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। स्वस्तिक के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है।


स्वस्तिक से जुड़े टोटके 

१. स्वस्तिक और वास्तु : 
वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक को वास्तु का प्रतीक मान गया है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा से एक समान दिखता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है।

घर के मुख्य द्वार के दोनों और अष्‍ट धातु और उपर मध्य में तांबे का स्वस्तिक लगाने से सभी तरह का वस्तुदोष दूर होता है। 

पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।


२. स्वस्तिक और कार्य : 
धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।

३. स्वस्तिक और व्यापार : 
यदि आपके व्यापार या दुकान में बिक्री नहीं बढ़ रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद वहां आधा तोला गुड़ का भोग लगाएं। इस उपाय से लाभ मिलेगा। कार्य स्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वस्तिक बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।

४. स्वस्तिक और देवी-देवता : 
स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्‍टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के उपर स्वस्तिक जरूर बनाएं।

५. स्वस्तिक और मनोकामना पूर्ति : 
देव स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर पंच धान्य या दीपक जलाकर रखने से कुछ ही समय में इच्छीत कार्य पूर्ण होता है। इसके अलावा मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिर में गोबर या कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वहीं जाकर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है।

६. स्वस्तिक और सुख की नींद : 
यदि आप रात में बैचेन रहते हैं। नींद नहीं आती या बुरे बुरे सपने आते हैं तो सोने से पूर्व स्वस्तिक को तर्जनी से बनाकर सो जाएं। इस उपाय से नींद अच्छी आएगी।

७. स्वस्तिक और संजा : 
पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक बनाती है। इससे घर में शुभता, शां‍ति और समृद्धि आती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है।

८. स्वस्तिक और धनलाभ : 
प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें। देहली (डेली) के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।

९. स्वस्तिक और शुभ रंग : 
अधिकतर लोग स्वस्तिक को हल्दी से बनाते हैं। ईशान या उत्तर दिशा की दीवार पर पीले रंग का स्वस्तिक बनाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे हैं तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। इसके लिए केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्मेमाल करें।

१०. स्वस्तिक और शारीरिक व मानसिक स्तर :
लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है। यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं।


स्वस्तिक बनाने के रंग व सामग्री 
ज्यादातर मौकों पर स्वस्तिक को हल्दी से ही बनाया जाता है। ईशान या उत्तर दिशा में दीवार पर यदि पीले रंग का स्वस्तिक बनाते हैं तो यह घर में सुख शांति बनाये रखने में लाभकारी होता है। इसी प्रकार मांगलिक कार्य के लिये लाल रंग का स्वस्तिक बनाना शुभ रहता है। सामग्री के तौर पर केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्तेमाल आप कर सकते हैं।


काला स्वास्तिक 
जिस प्रकार लाल रंग का स्वास्तिक का चिन्ह घर की खुशहाली का द्योतक हैं ठीक उसी प्रकार कोयले से बना काला स्वास्तिक बुरी नजर और बुरे समय को दूर करने के लिए बेहद ही उपयोगी और अचूक उपाय माना जाता हैं । काला स्वास्तिक भूत – प्रेत अर्थात शमशानी शक्तियों से घर को मुक्त रखने के लिए बेहद उपयोगी होता हैं क्योंकि यह इन सभी बुरी शक्तियों को अपने बस में कर लेता हैं ।

बुरी नजर से बचने के लिए भी काला स्वास्तिक बहुत ही शुभ होता हैं। बुरी नजर से अपने घर को बचाने के लिए होली के दिन एक भोजपत्र लें और उस पर कोयले से काला स्वास्तिक बना लें । अब इस भोजपत्र को अपने गले में धारण कर लें ।गले में भोजपत्र को धारण करने पर आपको किसी की बुरी नजर नहीं लगेगी तथा आपके जीवन में शुभता आएगी ।

यदि आपके घर परिवार के सदस्यों पर या आपके व्यवसाय को किसी की बुरी नजर लग गई हैं तो इस बुरी नजर के कुप्रभाव से बचने के लिए अपने घर के मुख्य द्वार पर कोयले से एक स्वास्तिक का चिन्ह बना लें। मुख्य द्वार की दीवार पर काले स्वास्तिक के चिन्ह को बनाने से आपके घर पर किसी भी व्यक्ति की बुरी नजर का प्रभाव नहीं होगा ।


लाल स्वास्तिक
सामान्यत: हम अपने घर के प्रवेश द्वार पर कुमकुम या रोली का इस्तेमाल कर स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं. स्वास्तिक के चिन्ह को बहुत ही पवित्र तथा शुभ माना जाता हैं। 


अशुद्ध स्‍थानों पर ना बनाएं स्‍वास्‍तिक
स्वास्तिक का प्रयोग शुद्ध, पवित्र एवं सही ढंग से उचित स्थान पर करना चाहिए। शौचालय एवं गन्दे स्थानों पर इसका प्रयोग वर्जित है। ऐसा करने वाले की बुद्धि एवं विवेक समाप्त हो जाता है। दरिद्रता, तनाव एवं रोग एवं क्लेश में वृद्धि होती है।



स्वास्तिक के इन अचूक उपायों को करने से आपको बहुत फायदा मिलता है। यदि आप चाहते हैं कि सभी तरह के कष्ट और रोग आपके घर से दूर हों तो आप इन बताए गए उपायों को ध्यान से और विशवास के साथ करें। 



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