Sunday 14 August 2022

शनि ग्रह एक छाया ग्रह है यह एक नपुंसक तामसिक, उद्दंड और कपटी ग्रह है

शनि ग्रह एक छाया ग्रह है भलेहि सौरमंडल में इसक अस्तित्वा विद्यमान है। यह एक नपुंसक ग्रह है। शनि ग्रह एक तामसिक, उद्दंड और कपटी ग्रह है। 

शनि ग्रह एक छाया ग्रह है लोगों का कहना है कि छाया ग्रह में सिर्फ दो ग्रह आते हैं राहु और केतु परन्तु ऐसा नहीं है। सूर्य की पत्नी संध्या की छाया (परछाई) के कोख से शनि का जन्म हुआ है। अर्थात उनकी मां छाया थी। छाया अर्थात सूर्य की पत्नी संध्या की परछाई जब संध्या तपस्या में लीन हो गई तो उनकी परछाई अर्थात छाया (झूठ, कपट, बेईमानी) उनसे अलग होकर सूर्य से प्रेम करने लगी और सूर्य को कभी भी यह प्रतीत नहीं हुआ कि यह संध्या नहीं अपितु छाया है और छाया ने सनी को जन्म दिया तो छाया का पुत्र छाया ही हुआ यह पहला तर्क है। 

दूसरा तर्क यह है कि राहु और केतु (अर्थात स्वर्भानू नामक अशूर) राहु और केतु वास्तव में एक ही शरीर था जिसका नाम था स्वर्भानू अशूर जब उसने अमृत पान किया तो विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके मस्तक को उसके शरीर से अलग कर दिए अर्थात दो टुकड़े कर दिए तो मस्तिष्क वाले हिस्से को राहु कहते हैं और शरीर को केतु कहते है। स्वर्भानू राक्षस का शरीर जब दो हिस्से में बटा तो वह 180 डिग्री पर स्थित हुआ और मस्तक की छाया शरीर पर तथा शरीर की छाया मस्तक पर्यन्त पहुंची इसलिए इन्हे छाया ग्रह की संज्ञा दी गई। परंतु शनि वास्तव में छाया ग्रह है क्योकि वह किसी शरीर या अस्तित्व से नहीं बल्कि एक अस्तित्वहीन परछाई (छाया) से जन्मा है। 

नौ ग्रह में से 3 ग्रह को पापी ग्रह कहा जाता है और उनमें से राहु और केतु को छाया ग्रह कहते हैं जबकि सनी भी छाया ग्रह है। 

शनि एक नपुंसक ग्रह है और यही कारण है कि उनके लिए अलग से शनि लोक बनाना पड़ा बाकि ग्रहों काफी दूर क्योंकि वह बाकी ग्रहों से भिन्न थे। क्योंकि शनि एक नपुंसक ग्रह है। बुद्ध ग्रह के बारे में भी कहा जाता है कि बुद्ध एक नपुंसक ग्रह। गौरतलब है कि बुद्ध ग्रह एक कुमार ग्रह (अर्थात 12 वर्ष से कम उम्र का ग्रह) है। इसलिए उसको नपुंसक ग्रह की संज्ञा दी गई है। परन्तु बुध ग्रह वास्तव में नपुंसक ग्रह नहीं है बल्की कुमार ग्रह है। शुक्र ग्रह को भी नपुंसक ग्रह कहा जाता है परंतु शुक्र की एक पत्नी व एक कन्या (पुत्री) भी थी। यदि शुक्र ग्रह नपुंसक होते तो उनकी कोई पुत्री नहीं होती। शुक्र ग्रह को नपुंसक इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह साजसज्जा और श्रृंगार के स्वामी है। शुक्र सुंदरता, बिलासिता व ऐस्वर्य के स्वामी है। 

वास्तव में नपुंसक ग्रह शनि देव हैं जो की छाया से जन्मे। शनि एक अस्वस्थ्य ग्रह है। एक आँख और एक पैर वाला अपाहिज और अनिष्ट ग्रह है। लिंगहीन अपूर्ण शरीर वाला ग्रह। इसका तीसरा प्रमाण यह है कि शनि देव की पत्नी (चित्ररथ की कन्या) ऋतुस्नान करके पुत्र प्राप्ति की इच्छा लेकर शनि देव के पास गई परन्तु उस समय शनिदेव अपने आप को घोर तपस्या में लीन कर लिए तभी उनकी पत्नी ने उन्हें शराब दिया कि जब तुम आंखें खोलो और जिन चीजों को देखो उसका अस्तित्व समाप्त हो जाए अर्थात अगर आप सोने को देखो तो वह कोयला हो जाए अगर आप कोयले को देखो तो सोना हो जाए। 

शनिदेव एक ईर्ष्यालु ग्रह भी है उनको ईर्ष्या है शुभग्रहों से, सुंदरता से, ऐश्वर्य से, मानसम्मान से, बिलासिता से, धनवान से क्योकि ये सब चीजें या तो उनके पास नहीं है या भोग करने में सक्षम नहीं हैं।  उनको ईर्ष्या होती है स्वास्थ्य से, जो नपुंसक नहीं है उनसे। जुवा, सट्टे, लॉट्री, चोरी,डकैती, जमाखोरी, शराब का ठेका आदि ऐसे सभी कार्य शनिदेव  अधिकार क्षेत्र में आते है। भले ही राहु देव ऐसे कर्मो को ऑपरेट करते है परन्तु ये सभी शनि के कार्य हैं। जिनकी कुंडली में शनि कर्म भाव का होता है उन लोगों की तरक्की तभी होती है जब ऐसे लोग गलत काम करते हैं कुसंगति करते हैं। इस तरह से शनि एक पापी ग्रह है। देवताओं को सताने वाला ग्रह है मनुष्यों को सताने वाला ग्रह है। डर से लोग भले ही कहते हैं कि शनिदेव  भगवान है शनि देव अच्छे कर्म के लिए अच्छा फल देते हैं लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हां यह कहा जाए कि शनि देव कर्म का फल देते हैं तो यह उत्तर्दाइत्वा इस ग्रह को दिया गया है।शनि को कर्मानुसार फल देने का उत्तरदायित्व दिया गया है। अतः कर्म का फल उसको देना होगा क्योंकि उसको इसी काम के लिए मनोनीत किया गया है। जो जैसा कर्म करेगा उसको वैसा फल देना यह शनि देव की मजबूरी है।  अन्यथा शनि देव किसी भी तरह से एक अच्छे ग्रह या देव या भगवान नहीं है शनि देव एक पापी ग्रह है। 

शनि देव सूर्य के पुत्र व अत्यंत पराक्रमी व शक्तिशाली ग्रह हैं। परन्तु शनि देव तामसिक, उद्दण्ड, पापी ग्रह है। शनिदेव सूर्य के पुत्र जरूर हैं परन्तु वह सूर्य पर भी ग्रहण लगा देते हैं धब्बा लगा देते हैं दाग लगा देते हैं अपमानित करते हैं।यदि कोई कहे कि आप अच्छे कर्म करो तो शनिदेव आपको अच्छा फल देंगे यह असत्य है। जो स्वयं अच्छा कर्म नहीं किया हो भला वह अच्छे कर्म का फल कहां से देगा। जिस प्रकार से इंद्र की उत्तर दायित्व है कि वह बारिश कराए, पवन देव हवा और ऑक्सीजन दे उसी तरह से शनिदेव को यह उत्तर दायित्व सौंपा गया कि वह कर्मों का फल दे यह जरूरी नहीं कि हर अच्छे कर्म का अच्छा फल दे और बुरे कर्म का बुरा फल दे। बुरे कर्म करने के पश्चात भी शनिदेव अच्छे फल देते हैं उस समय पंडित और विद्वान यह कहते सुने गए हैं कि नहीं इसकी पूर्व जन्म की फल मिल रहा है शनि देव पूर्व जन्म के अनुसार फल देते हैं ऐसा नहीं है सनी एक पापी ग्रह है। समय चक्र के अनुसार अगर समय सही है तो इस ग्रह की उल्टी दृष्टि आपको अच्छे फल दे देगी। जब उनकी पत्नी ने उन्हें श्राप दिया तो उन्होंने ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा था कि अच्छे कर्म करने से तुम्हारी दृष्टि अच्छी होगी। उन्होंने श्राप दिया था और यह कहा कि तुम्हारी दृष्टि जहां भी पड़ेगी उस चीज का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा सोना कोयला हो जाएगा कोयला सोना हो जाएगा। वैसे तो राहु देव भी लोगों को राजा बना देते हैं राजा को रंक और बृहस्पति भी तकलीफ दे देते हैं जो कि सबसे अच्छे ग्रह है। शनिदेव एक पाप ग्रह तो है ही साथ ही एक छाया ग्रह भी है राहु और केतु की तरह। 

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